🔷 बेणेश्वर महादेव का मंदिर-नेवरपुरा/नवाटापुरा (डूंगरपुर)
▪️ बेणेश्वर का अर्थ होता है-’’डेल्टा की मल्लिका’’ या ’’मृत आत्माओं का मुक्ति स्थल’’। यह मंदिर सोम, माही व जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित हैं।
▪️ यहाँ पर विश्व का एकमात्र मिट्टी का बना हुआ पांच तरफ से खण्डित शिवलिंग है। इस शिवलिंग को पुजारी के अलावा अन्य कोई नहीं छू सकता हैं।
▪️ यहाँ पर मेला माघ पूर्णिमा को लगता हैं जिसे आदिवासियों का कुम्भ/भीलों का कुम्भ/ वागड़ का पुष्कर भी कहते हैं।
▪️ यहाँ पर आदिवासी अपनें पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं।
🔷 एकलिंग जी का मंदिर – कैलाशपुरी (उदयपुर)
▪️एकलिंग जी मेवाड़ के महाराणाओं के ईष्टदेव या कुल देवता थे। इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदी में बप्पा रावल ने करवाया जिसकों वर्तमान स्वरूप महाराजा रायमल ने दिया।
▪️मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानकर शासक किया करते थे मेवाड़ के शासक एकलिंग जी के मन्दिर में तलवार के स्थान पर छड़ी लेकर जाते थे।
▪️एकलिंगजी का मन्दिर राज्य में पाशुपत सम्प्रदाय का सबसे बड़ा मन्दिर है।
▪️इस मन्दिर में शिव की चैमुखी मूर्ति है। पूर्व के मुख में सूर्य, उत्तर के मुख में ब्रह्मा, दक्षिण के मुख में शिव तथा पश्चिम के मुख में विष्णु के दृष्य हैं।
▪️इस मन्दिर के पास लकुलीश मन्दिर हैं।
🔷 घुष्मेश्वणर महादेव का मन्दिर- सिवाड़ (सवाई माधोपुर)
▪️देश के 12 ज्योर्तिलिंग में विख्यात है। इस मन्दिर में शिवलिंग सदैव जल में डूबा हुआ रहता है जिसके कारण भक्तों के दर्शन शीषे के माध्यम से होते है।
यहाँ के पर्वत कैलाश पर्वत के अनुभव कराते हैं।
🔷 मण्डलेश्वर शिव मन्दिर अर्थूना (बांसवाड़ा)
▪️अर्थूना को ग्रन्थों में उत्थूनक कहा गया है। यह लकुलीश सम्प्रदाय का परमार कालीन राजस्थान का प्रसिद्ध मन्दिर है।
शिल्पकला की दृष्टि से आबू तथा यहाँ के मन्दिरों मे काफी समानता हैं।
🔷 राजराजेश्वतर/सिद्धेश्वर शिव मन्दिर (जयपुर)
▪️यह मन्दिर आम जनता के लिए केवल शिवरात्री के दिन खुलता हैं।
▪️मोती डूंगरी के महलों में इस मन्दिर का निर्माण 1864 में जयपुर के नरेश रामसिंह ने करवाया था।
यह जयपुर के राजाओं का निजी मन्दिर हैं।
🔷 देव सोमनाथ मन्दिर- डूंगरपुर
▪️12वी सदी में निर्मित, यह 3 मंजिला देव सोमनाथ मन्दिर सोम नदी के किनारे स्थित हैं।
▪️इसका निर्माण केवल पत्थरों से बिना चूना, मिट्टी व सीमेन्ट के किया गया है।
▪️विेशेष- वागड़ के सोमपुरों की सिलावटी हस्तकला का यह अभूतपूर्व उदाहरण है।
🔷 गेपरनाथ महादेव मंदिर- कोटा
▪️2008 में भूस्खलन के कारण यह मन्दिर चर्चा में रहा, इस मन्दिर में शिवलिंग/गर्भगृह जमीन की सतह से 300 फीट नीचे हैं।
▪️इस मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर सदैव एक जलधारा बहती है।
🔷 कंसुआ का शिव मंदिर- कोटा
▪️इस मन्दिर की दीवार पर कुटिया लिपी में 8वीं सदी का शिवगण मौर्य का शिलालेख मिला है।
▪️इस मंदिर की विशेषता है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के 7-8 मीटर अन्दर स्थित शिवलिंग पर गिरती है।
इस मन्दिर में 1008 मुखी शिवलिंग भी है।
🔷 सोमनाथ मन्दिर – भानगढ़ (अलवर)
▪️गुजरात के सोमनाथ मन्दिर की प्रकृति का राज्य में यह एकमात्र मन्दिर है।
🔷 चार-चैमा का शिवालय- चार चैमा (कोटा)
▪️यह कोटा राज्य का सबसे प्राचीन शिव मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण चैथी सदी के आसपास हुआ था, इसलिए इसे गुदा कालीन मंदिर भी कहते है।
🔷 शीतलेश्वर महादेव मन्दिर-झालरापाटन (झालावाड़)
▪️चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित इस मंदिरदिर को चन्द्रमोली मन्दिर भी कहते हैं।
▪️महामारू शैली में बना यह राजस्थान का पहला समयाकिंत मन्दिर है जिस पर लिखा है 689।
▪️यह एक अर्द्धनारीश्वनर मन्दिर है। अर्द्धनारीश्वसर का अर्थ है आधा शिव आधी पार्वती।
🔷 कपालीश्वर महादेव मन्दिर – इन्द्रगढ़ (बूँदी)
▪️यह मन्दिर चाखण नदी के किनारे है।
▪️विशेष- शैव सम्प्रदाय के आचार्य मत्स्येन्द्र नाथ की राज्य में एकमात्र प्रतिमा इन्द्रगढ़ से मिली है।
🔷 समेद्धश्वर महादेव मन्दिर(चितौड़)
▪️इस मन्दिर का निर्माण मालवा के राजा भोज ने करवाया लेकिन पुनर्निर्माण महाराणा मोकल ने करवाया इसलिए इसे ’’मोकल जी का मन्दिर’’ भी कहते है।
▪️मध्यकाल में पूर्ण विकसित परमार मूर्तिकला का चित्तौड़गढ़ क्षेत्र में एकमात्र उदाहरण है।
🔷 मातृकुण्ड़िया का मन्दिर-राश्मि गाँव (चित्तौड़गढ़)-
▪️बनास नदी के किनारे स्थित मातृकुण्डिया को ’’मेवाड़ का हरिद्वार’’ कहते हैं। यहाँ स्थित कुण्ड़ में मृत व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन किया जाता है।
▪️हरिद्वार की तरह यहाँ भी लक्ष्मण झूला लगा हुआ हैं।