Educational intervention शैक्षणिक हस्तक्षेप

 Unit 2.4

  Educational intervention
( शैक्षणिक हस्तक्षेप ) 

 

धीमी गति से सीखने वाले बालकों में पिछड़ेपन के कारणों का पता लगाकर यदि उपयुक्त उपचार किए जाएं तथा उपयुक्त शैक्षणिक प्रविधियों का प्रयोग किया जाए तो उनकी शैक्षिक उपलब्धि को सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है। पिछड़े बालकों की शिक्षा के संदर्भ में अनेक अनुसंधान हुए है, जो इनके लिए उचित शिक्षण विधि, उपयुक्त पाठ्यक्रम, प्रशासनिक ढांचे एवं विद्यालय संगठन आदि से संबंधित है।



शैक्षणिक हस्तक्षेप के माध्यम से बालक में यह भावना उत्पन्न की जा सकती है कि वह परिवार विद्यालय समाज तथा सहपाठियों में वाछिंत है। स्पष्ट है शैक्षणिक हस्तक्षेप से तात्पर्य बालक की धीमी गति से सीखने के कारण आने वाले समस्याओं को दूर करने के प्रयास से हैं। पिछड़े बालकों के लिए शैक्षणिक हस्तक्षेप करते समय निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखना चाहिए— 

व्यक्तिगत सामर्थ्य

सामाजिक सामर्थ्य बढ़ाना।

आत्मविश्वास बढ़ाना

स्वस्थ आदतों का विकास कराना।

शैक्षिक हस्तक्षेप संबंधित निर्देश — 

धीमी गति से सीखने वाले बालकों की शिक्षा के लिए तीन संभावित विकल्पों सकते हैं—

  1. विशिष्ट विद्यालय
  2. विशेष कक्षाएं
  3. सामान्य कक्षा में विशिष्ट प्रावधान।


  1.  सुनिश्चित करें कि बालक की दृष्टि की जांच शीघ्र ही करायी गयी है।
  2. दृष्टिबाधित धीमी गति से सीखने वाले बालक के लिए वाचक वह विभिन्न तरीकों से कहानी विषय वस्तु के अनुसार भेंद करके पढ़े।
  3.  यथाशीघ्र ऐसे बालकों की पहचान दृष्टि वाधा से अलग करते हुए करनी चाहिए।
  4. बालक को नए व कठिन शब्दों को श्रेणीबद्ध करने को कहे।
  5. हस्तक्षेप प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिए बालक के संदर्भ में अधिक से अधिक जानकारी प्रकट करें।
  6. आवश्यकतानुसार विशेष कक्षाओं का आयोजन करें।
  7. शैक्षणिक अभ्यास के लिए पर्याप्त समय देना।
  8. शैक्षिक कारी छोटे-छोटे इकाइयों में बैठ कर करवाएं।

  9. इन बालकों के साथ कार्य करने में असीम धैर्य रखना चाहिए। विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापक विशेषज्ञ छात्र की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक में कार्य संपन्न करें

अभिभावकों के लिए सुझाव—

शैक्षणिक हस्तक्षेप में धीमी गति से सीखने वाले बालकों के अभिभावकों को निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं —

  1. बालकों की शिक्षा हेतु उपयुक्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।
  2. परिवार का वातावरण अत्यंत शांति पूर्ण होना चाहिए।
  3. बालकों की हर सफलता पर अभिभावकों को उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए।
  4. इन बच्चों को मित्रों के साथ खेलने एवं बातचीत करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करने चाहिए।
  5. अभिभावकों का यह कर्तव्य है कि वह समय-समय पर बच्चों के अध्यापकों से संपर्क करें एवं उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास करें।
  6. बालकों को सीखने के लिए उचित अवसर प्रदान करें।
  7. बच्चों की वास्तविक आयु के अनुसार इस प्रकार के बौद्धिक खेलों से सिखाने का प्रयास करें जो उनकी मानसिक आयु में वृद्धि करें।

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