Unit 3.2
Attention -deficit/Hyperactivity disorder (ADHD) -- concept, educational implications and teaching strategies
( अवधानहीन अति सक्रियता: अवधारणा शैक्षिक समस्याएं और
शैक्षणिक रणनीतियां )
ध्यान में कमी एवं अति चंचल व्यवहार से ग्रसित बच्चे कक्षा में अन्य बालकों के साथ नहीं रह पाते। A. D. H. D. बाल्यावस्था के सबसे सामान्य व्यवहारिक समस्याओं में से एक है। यह ऐसी क्षति है जो लंबे समय तक रहती है। इस दोष से ग्रसित बालक का मन किसी काम में बहुत देर तक नहीं लगता किसी भी काम को करते करते वह बहुत जल्दी उठ जाता है और उसे छोड़कर दूसरा काम करने लगता है, लेकिन उसमें भी उसका मन अधिक नहीं लगता है और वे उसे भी छोड़ कर किसी तीसरे काम में लग जाता है। उदाहरणार्थ- अपनी सीट छोड़ देना, कार्य को बीच में छोड़ देना या कक्षा की गतिविधियों में बाधा उत्पन्न करना।
A. D. H. D. से ग्रसित बालक मानसिक रूप से पूर्णतः स्वच्छ होते हैं । यह बालक ध्यान में कमी के साथ आक्रोशित, उत्तेजित व आवेशित व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं।
A. D. H. D एक प्रकार का मानसिक रोग है मानसिक मंदता नहीं है
परिभाषा:-
"A. D. H. D से ग्रस्त बच्चे का मस्तिष्क सामान्य बच्चों की तुलना में 3% तक छोटा और अपरिपक्व होता है जिस कारण उसके मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सिग्नल आदान-प्रदान में व्यवधान आता है"
कारण:-
यह बीमारी आनुवांशिक कारणों अथवा मस्तिष्क में चोट लगने से हो सकती है। एवं पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित भी होती है। इससे ग्रस्त बच्चे में मस्तिष्क का विकास से ढंग से होता है किंतु उसमें परिपक्वता नहीं आ पाती। उम्र बढ़ने के साथ ही में यह बीमारी बनी रहती है।
शैक्षिक समस्याएं एवं कक्षा कक्ष हस्तक्षेप—
A. D. H. D से ग्रसित बालकों के लिए कक्षा कक्ष हस्तक्षेप सामान्य व्यवहार हस्तक्षेप सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। समस्या को देखते हुए या व्यवहार गत समस्याओं को देखते हुए किसी विशेष समस्यात्मक व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अगले चरण में बालक के लिए एक सामान्य व्यवहार का चयन किया जा सकता है। बालक को स्पष्ट करें कि कि किस तरह का व्यवहार कक्षा में स्वीकार्य नहीं है। इन दीवारों को भलीभांति परिभाषित होना आवश्यक है, जिससे एक अध्यापक इन्हें ठीक प्रकार से पहचान सके।
शैक्षिक रणनीतियां—
निम्नलिखित शिक्षण पर विधियों के माध्यम से A. D. H. D से ग्रसित बालकों की सहायता की जा सकती है।
- प्रश्न पूछने से पहले थोड़ा रुके और जिज्ञासा उत्पन्न करें।
- जल्दी-जल्दी प्रश्न पूछे जिससे बालक का ध्यान भ्रमित ही न होने पाए।
- एक एक बालक से अलग-अलग प्रश्न पूछे।
- प्रश्नों में बच्चों के नाम शामिल करें।
- कभी-कभी रोचक और अत्यंत सामान्य प्रश्न भी पूछे जो संबंधित विषय से अलग हो जाता है।
- बालक में रुचि उत्पन्न करने के लिए सभी संभावित प्रयास करें।
- पढ़ाते समय बालक के निकट खड़े हो, और उसके कंधे को विश्वास करते रहे, जिससे उसे एहसास हो कि आप से पढ़ा रहे हैं।
- पाठ को आवश्यकतानुसार छोटा कर सकते हैं।
- जो भी पाठ या पंक्ति पढ़ाई जा रही है, कक्षा में भ्रमण के दौरान ऐसे बालकों की पुस्तकों में हाथ से इंगित करते रहे।
- नाटकीयता ( अभिनय ) कौशल का प्रयोग करें।
- सखी निर्देश स्पष्ट एवं बोलकर दिए जाएं।
- बच्चे को स्वयं सर्वेक्षण में निपुण बनाए।
- सहपाठी शिक्षण को प्रोत्साहन दें।
- निर्देश देने के लिए मधुर वाणी का प्रयोग करें।
- शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएं 20 समय-समय पर कराए जानी चाहिए।
यह ध्यान रखने की बात है कि किसी भी एक शैक्षिक विधि या हस्तक्षेप रणनीति से इन बालकों की प्रगति में सुधार नहीं किया जा सकता। व्यवहार प्रबंधन कार्यक्रमों द्वारा इन बालकों कि व्यवहारगत समस्याओं को धीरे-धीरे अवश्य दूर किया जा सकता है।