CHALLENGES OF TEACHING VISUALLY IMPAIRED CHILDREN WITH ADITIONAL DISABILITIES दृष्टिबाधा के साथ अतिरिक्त विकलांगता वाले बालकों की शैक्षणिक चुनौतियां

CHALLENGES OF TEACHING VISUALLY IMPAIRED CHILDREN WITH ADITIONAL DISABILITIES
 ( दृष्टिबाधा के साथ अतिरिक्त विकलांगता वाले बालकों की शैक्षणिक चुनौतियां )

बहु विकलांग बालकों की शिक्षा स्वयं में एक चुनौती है। यह एक बहुत विशेष समूह है सर्वप्रथम दृष्टिहीनता से आशय पूर्ण अंधता से हैं या कम से कम प्रयोग की जाने शेष दृष्टि से हैं , यह जानना आवश्यक है कि दूसरे जो भी अतिरिक्त विकलांगता है वह किसी प्रकार की है जैसे प्रमस्तिकिय पक्षाघात व्यक्ति की गति को बाधित करती है इसी प्रकार मानसिक मंदता बालक की बुद्धि को कम से अधिक के क्रम में प्रभावित करती है स्वलीन बालक बहुत आक्रामक बहुत शांत अथवा बहुत धीमी गति से सीखने वाला हो सकता है।
यहां समस्या यह है की यह बालक आसानी से किसी भी विद्यालय में समायोजित नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि एक दृष्टिबाधित मानसिक मंद बच्चा दृष्टिवान मानसिक मंद बच्चों के साथ समान रूप से एक ही कक्षा मैं लाभान्वित नहीं हो सकता। इसके साथ ही बहु विकलांगता में प्रशिक्षित अध्यापक और प्रशिक्षण कर्ताओं की कमी इन बालकों की शिक्षा में समस्या उत्पन्न करती है। बहु विकलांग बालकों को शिक्षा प्रदान करने में आने वाली समस्याएं इस प्रकार से हैं—
1. संप्रेषण की समस्या :- बधिरांध बालकों के समक्ष संप्रेषण की समस्या सबसे गंभीर होती है । यह स्वयं को बोलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाते। अतः अन्य बालकों के साथ इनकी अंतः क्रिया सीमित रह जाती है।

2. सीखने की धीमी गति— किसी एक अथवा कहीं संवेदी अंगों में दोष के कारण यह बालक किसी भी वस्तु का संपूर्ण प्रत्येक नहीं सीख पाते। अतः इनका सीखना अधूरा तथा सीखने की गति धीमी होती है।

3. समायोजन में समस्या— दृष्टिबाधा के साथ अतिरिक्त विकलांगता के कारण यह बालक आसानी से सामान्य कक्षाओं में और कभी-कभी तो विशेष कक्षा में भी समायोजित नहीं हो पाते। इन बालकों की शिक्षा में यह सबसे बड़ी समस्या है। 

4. कक्षा गतिविधियों में सीमित सहभागिता:— अधिकांशतः दृष्टिबाधा के साथ प्रमस्तिष्किय पक्षाघात या श्रवण बाधित की समस्या पाई जाती है परिणाम स्वरूप इन बालकों में मांसपेशियों संतुलन तथा संप्रेषण का अभाव रहता है । इस कारण ये कक्षा में होने वाली अनेक गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते। 

5. मनोवैज्ञानिक समस्याएं— अपनी अक्षमता के कारण प्राय: इन बालकों में हीन भावना अत्यधिक चिड़चिड़ापन और समाज से अलग रहने की भावना उत्पन्न हो जाती है। संप्रेषण की कमी के कारण इन्हें भावनात्मक सहयोग भी नही मिल पाता , जिससे ये समस्या गंभीर होती जाती है, इसका सीधा प्रभाव बालक की शिक्षा पर पड़ता है।
6. अध्यापकों में धैर्य का अभाव :— बहुविकलांग बालकों की शिक्षा में शिक्षक की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है । ये बालक धीमी से बहुत धीमी गति से सीखने वाले हो सकते हैं । अतः अध्यापकों को धैर्यवान होना है, हम ऐसे लक्ष्यों का निर्धारण करें, जो छोटे हों, वास्तविक हों और इन बालकों की पहुंच में हों। 
दृष्टिबाधा के साथ अतिरिक्त विकलांगता होना समस्या की गंभीरता बढ़ाने वाला है। इन बालकों की शिक्षा प्रदान करते समय यह सदेव ध्यान रखना चाहिए कि ये बालक छोटे छोटे चरणो में अत्यधिक परिश्रम से और , बार बार दोहरा कर ही सीख सकते हैं, इन्हें शिक्षा प्रदान करने के लिए अत्यंत व्यवस्थित पाठ योजना की आवश्यकता होती है। ये बालक धीमी गति से प्रगति प्रदर्शित करते हैं और इन्हें सामान्यीकरण में कठिनाई होती है।
      हम कई बार यह भी नहीं समझ पाते कि बहुविकलांग बच्चा किस स्तर तक समझ पा रहा है, उनके द्वारा किया जाने वाला संप्रेषण भी कई बार हमारे लिए अपरिचित और अपेक्षाकृत नया हो सकता है। इस स्थिति में कई बार अध्यापक बालक को मानसिक मंद समझने लगते हैं, जो वह भी होते हैं । अतः आवश्यकता है कि बालक का ठीक प्रकार से मूल्यांकन करने के बाद व्यवस्थित पाठ योजना, उचित शिक्षण पद्धति और अपार धैर्य के साथ बहुविकलांग बालकों का शिक्षण प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाए।

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