Historical perspectives of Disability - National and International & Models of Disability

 1.1 Historical perspectives of Disability - National and International & Models of Disability 

Paper:- 1 

Name - introduction to Disability 


दिव्यांगता समाज में अलग-थलग माने जाने वाला समूह रहा है प्राचीन साहित्य का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि दिव्यांगों की दशा उस समय बहुत सोचनीय थी उस समय उन्हें राक्षस बुरी आत्मा तथा पूर्व जन्म का पाप जाता था उन्हें समाज से अलग तथा वंचित कर दिया जाता था समाज द्वारा प्रारंभ से ही दिव्यांगता को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा गया है या फिर के प्रति सहानुभूति पूर्ण रवैया रखा गया है लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगों के विकास के क्षेत्र में परिवर्तन देखने को मिला धीरे लोगों में दी लता के प्रति रुचि लेना प्रारंभ कर दिया तथा अधिनियम नीतियों और दिव्यांगों से संबंधित दस्तावेज में उनके शिक्षण प्रशिक्षण में पुनर्वास के क्षेत्र में कार्य किया जैसे लोगों का ध्यान दिव्यांगों के शिक्षण प्रशिक्षण पर गया ।


समय परिवर्तन के साथ साथ लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया जिसमें शिक्षा शास्त्री धर्मावलंबी महात्मा ऋषि मुनि आदि लोगों का विशेष योगदान रहा इन्होंने भी दिव्यांगों को समाज का मुख्य अंग माना और कार्य करना प्रारंभ कर दिया |  दिव्यांगता के क्षेत्र में क्रमबद्ध विकास को हम निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट कर सकते हैं-


16 वीं शताब्दी- 

16वीं शताब्दी में पोप ग्रेगरी प्रथम ने धामी वंश जारी कर अपने अनुयायियों को दिव्यांग जनों की सेवा करने का आदेश दिया तो फिर भी उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी ।


17 वी शताब्दी-  

17वी शताब्दी में दिव्यांग जनों की शिक्षा दीक्षा एवं देखरेख की व्यवस्था की जाने लगी दर्शन शास्त्रीय एन ए डिस्कार्ड ने सीखने के सिद्धांत की नींव रखी इसी काल में पाहो पीन्स की ली नामक एक स्पेनिश वैज्ञानिक ने बधिर बच्चों को लिखा ना पढ़ाना प्रारंभ किया इसी काल में सूरदास और अन्नास का भी वर्णन मिलता है जनों की बदलती स्थिति का सूचक है।


18 वीं शताब्दी -

 इस युग को पुनर्वास की अवस्था भी कहते हैं जो कि सामाजिक परिवर्तन के परिणाम स्वरूप आती है काल में शोध एवं अनुसंधान भी प्रारंभ किए राजनीतिक सुधारकों ने शिक्षा और स्वास्थ्य में दिव्यांगों की शिक्षा एवं दक्षता को जोड़ने का सफल प्रयास किया इसी काल में वाणी एवं भाषा संबंधी विकास सर्वप्रथम अंबे चार्ल्स द्वितीय एवं सैमुअल हार्वे ने हस्त चलित संकेतों की एक पद्धति विकसित की इन्हें सांकेतिक पद्धति का जनक के नाम से जाना जाता है इसके उपरांत 1748 ईस्वी में डॉक्टर दीड रिट ने दृष्टि बाधित व्यक्तियों की शिक्षा प्रारंभ की सर वैलेंटाइन ने सन 1784 इसवी में प्रथम अंध विद्यालय खोला ।


19वीं शताब्दी- 

19वीं शताब्दी दिव्यांग जनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही इस शताब्दी में क्रमबद्ध तरीके द्वारा दिव्यांग बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयास किए गए इसी शताब्दी में दिव्यांग जनों हेतु शिक्षा के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति लुइस ब्रेल का जन्म 1809 इसवी में हुआ 1870 ईस्वी में ब्रिटेन के लोग दिव्यांगों की शिक्षा के लिए जागरूक हुए 19वीं शताब्दी में दिव्यांग जनों हेतु महत्वपूर्ण कार्य करने वालों में एलेग्जेंडर ग्राहम बेल (अमेरिका) (1887 से 1922) ईस्वी तक अलफ्रेड बिनेट (फ्रांस 1857 से 1910 ईस्वी तक ) मैडम मरिया मोंटसरी (इटली 1870 से 1952 ) तक आदि नाम प्रमुख हैं भारत में सन 1857 में श्रीमती एनी शार्प ने अमृतसर में प्रथम अंध विद्यालय की स्थापना की।


20 वी शताब्दी - इस शताब्दी के प्रारंभ में मानसिक तौर पर पिछड़े बालकों के लिए विद्यालय खोले गए परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो सका कुछ समय पश्चात श्रवण बाधित एवं दृष्टि दोष वाले बच्चों के लिए एक दिवसीय विद्यालय खोले गए इस शताब्दी में भी आंशिक निशक्त व्यक्तियों के लिए तो विद्यालय थे परंतु उनमें पूर्णतया सुविधा नहीं थी सन 1903 ईस्वी में लंदन कमीशन और इस क्षेत्र में कार्य करने वाली कुछ उत्तरदाई संस्थाओं ने मिलजुल कर मंदबुद्धि बालकों के लिए कुछ प्रावधान बनाएं और उनकी शिक्षा प्रारंभ की।


सन 1913 ईस्वी में भारत के कई राज्यों में दृष्टिहीन मुख बधिर बच्चों के लिए प्रावधान किया गया तथा विद्यालय खोले गए सन 1918 ईस्वी में रॉयल कमीशन हुआ जिसे मेंटल डेफिशियेंसी बिल के नाम से जाना जाता है।


भारत में ही सन 1929 में डॉक्टर कुंजित वर्ल्ड ने स्कूल फॉर द ब्लाइंड के माध्यम से मद्रास एसोसिएशन की स्थापना की 1936 ईसवी में ही मंदबुद्धि बच्चों के लिए सरकारी मानसिक अस्पताल की स्थापना की गई।


1950 ईस्वी में अक्षमता को अलग से परिभाषित किया गया और सन 1954 ईस्वी में मुंबई में एक नियमित विद्यालय में पहली बार विशेष शिक्षा प्रारंभ की गई।


सन 1965 से 66 ईसवी तक भारत में एजुकेशन कमीशन रिपोर्ट के अनुसार दिव्यांग बच्चे जहां तक संभव हो सामान्य विद्यालयों में समायोजन पर बल दिया गया।


1968 ईस्वी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेष विद्यालय एवं समेकित विद्यालय की बात की गई।


1972 ईस्वी में लुइस ब्रेल मेमोरियल अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई।


1986 ईस्वी में नई शिक्षा नीति मैं दिव्यांग जनों को मुख्यधारा में शामिल करने की बात की


1987 ईस्वी में भारत में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम पारित हुआ ।


1992 ईसवी में भारत सरकार ने भारतीय पुनर्वास परिषद की स्थापना की । 

1995 ईस्वी में भारत में निशक्त व्यक्तियों के लिए निशक्तजन अधिनियम- पीडब्ल्यूडी एक्ट

 1995 बना जो दिव्यांगता के क्षेत्र में अब तक का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास रहा है।


1999 ईस्वी में राष्ट्रीय न्यास अधिनियम नेशनल ट्रस्ट एक्ट स्वलीनता, बहु विकलांगता को शामिल किया गया। न हुआ जिसमें चार प्रकार की क्षमताओं मानसिक मंदता, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, ि


इस प्रकार सरकारी एवं गैर सरकारी तौर पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने दिव्यांग जनों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए जिसमें दिव्यांग जनों को पुनर्वास सेवाओं के साथ-साथ सामान्य जीवन प्रदान करते हुए समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में आसानी हुई तथा इसके साथ ही दिव्यांग जनों को बाधा मुक्त वातावरण उपलब्ध कराने हेतु प्रयास जारी हैं के साथ ही समय अनुसार उनके दृष्टिकोण में रुचि व्यवहार आदि में परिवर्तन भी आया।  और आधुनिक तकनीकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।


विकलांगता के मॉडल-


> नैतिक और / या धार्मिक मॉडल: भगवान के एक कार्य के रूप में विकलांगता


चिकित्सा मॉडल: विकलांगता के रूप में एक बीमारी


> सामाजिक मॉडल: विकलांगता एक के रूप में सामाजिक रूप से निर्मित घटना


> पहचान मॉडलः विकलांगता के रूप में एक पहचान


मानवाधिकार मॉडलः विकलांगता मानवाधिकार के मुद्दे के रूप में


> सांस्कृतिक मॉडल: विकलांगता संस्कृति के रूप में


> आर्थिक मॉडल: विकलांगता के रूप में उत्पादकता के लिए एक चुनौती


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