Implication ( उलझन या समस्या )
धीमी गति से सीखने वाले बालकों को अपने निम्न शैक्षिक उपलब्धि के कारण अनेक समस्याओं और उलझनों का सामना करना पड़ता है । इन बालकों की प्रमुख समस्याएं इस प्रकार है—
समायोजन की समस्या— ऐसे बालक विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों, शैक्षणिक स्थितियों अथवा किसी समूह विशेष की अपेक्षाओं को भली-भांति नहीं समझ पाते। अतः इस समूह में स्वयं को आसानी से समायोजित नहीं कर पाते।
प्रेरणा का अभाव — व्यक्ति की अपनी सफलता खुद उसके लिए प्रेरक का कार्य करती है। पिछड़े बालकों में इस प्रेरणा का अभाव होता है। इस कारण उनकी उपलब्धि सामान्य से कम होती है।
असफलता का भय— कई बार असफल होने के कारण बालकों में असफलता का डर घर कर जाता है। इस डर के कारण यह अपनी सीमित क्षमता का भी पूरा उपयोग नहीं कर पाते।
दुश्चिंता और चिड़चिड़ापन— यह बालक अपने भविष्य को लेकर दुश्चिंता में रहते हैं। साथ ही किसी कार्य में मिलने वाली लगातार असफलता इन्हें चिड़चिड़ा कर देती है।
व्यवसायिक समस्याएं— यदि बालक शैक्षक रुप से पिछड़े हैं, तो कुछ व्यवसायों जैसे- शिक्षण, प्रशासन, प्रबंधन इत्यादि के लिए अनुप्रयुक्त होते हैं।
विद्यालय फोबिया (डर) — विद्यालय में यदि बालक को वांछित वातावरण नहीं मिलता है तो वह निरूत्साहित हो जाता है, विद्यालय जाने से डरता है, रोता है अथवा बीमार भी हो जाता है।
शर्मिलापन— यह बालक जब किसी नई प्रस्तुति में जाते हैं तो उनमें हिचकिचाहट या शर्मिलापन देखा जाता है।
धीमी गति से सीखने वाले बच्चों के अध्यापकों के लिए सुझाव
इन बच्चों को सिखाने के लिए बार-बार वह अधिक अभ्यास कराना आवश्यक है।
ऐसे स्थान पर कार्य किया जाए, जहां शांत वातावरण हो, तथा बच्चे को कार्य करते हुए उसके कार्य का निरीक्षण करना संभव हो।
ऐसे कार्य करने का अवसर दिया जाए, जिसमें उसे सफलता का अनुभव मिले।
कार्य कराते समय बच्चे के साथ संबंधित विषय पर बातचीत करना।
अध्ययन कौशल सिखाया जाना।
सहपाठी अध्यापन पर विशेष ध्यान देना।
मूल्यांकन के लिए लघु परीक्षा, मौलिक परीक्षा आदि पर बल देना।
इन बच्चों के लिए उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
आवश्यकतानुसार अधिक समय देकर कि उन्हें कक्षा के अन्य बच्चों के स्तर तक लाने का प्रयास किया जा सकता है।