Unit — 3.3
Mental retardation – concept, educational implications and teaching strategies
( मानसिक मंदता: अवधारणा, शैक्षणिक समस्याएं एवं शैक्षणिक रणनीतियां )
मानसिक ममता का सामान्य अर्थ है- औसत से कम मानसिक योग्यता। मानसिक मंद बच्चों की बुद्धि लब्धि सामान्य बच्चों से कम होती है इनका मानसिक विकास धीमा होता है। और यह अपने हमउम्र बच्चों की तुलना में बौद्धिक रूप से पिक्चर जाते हैं की मानसिक विमन्दित बच्चों में दृष्टिबाधा की संभावना अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक होती है।
परिभाषा:- according to mental health act 1987 :- " मानसिक मंदता का अर्थ है मस्तिष्क की बाधित अथवा अपूर्ण विकास की स्थिति जो कि 18 वर्ष से पूर्ण होती है, चाहें यह अनुवांशिक कारणों से उत्पन्न हुई हो, अथवा किसी रोग या चोट के कारण हो।"
According to PWD act 1995 :- " ऐसा व्यक्ति जिसका चिंतन अवरुद्ध अथवा अपूर्ण विकास की अवस्था में तथा विशेष रुप से बुद्धि की असमानता द्वारा परिलक्षित हो तो इसे मानसिक मनता कहा जाएगा।"
दृष्टिबाधा तथा मानसिक विमन्दित के अधिगम संबंधी लक्षण—
दृष्टिबाधा के साथ मानसिक मंदता होने से कोई भी नया कौशल सीखने में अत्यधिक समय लगता है, एवं कठिनाई होती है तथा दूसरों से कम संख्या में कौशल सीख पाते हैं । अधिगम की महत्वपूर्ण समस्याएं निम्नलिखित है—
उपयुक्त उद्दीपक तथा संकेत के प्रति ध्यान देने में कमी।
दूसरों का अनुकरण करने में समस्या।
पहले सीखी हुई दक्षताओं तथा सूचनाओं को स्मरण करने में कठिनाई।
अलग-अलग दक्षताओं को एक अर्थ पूर्ण समग्र में बदलने में कठिनाई
स्वयं के व्यवहार को व्यवस्थित करने में कठिनाई।
व्यक्तिक सामाजिक लक्षण
ऐसे बच्चे आमतौर पर दूसरों से तब तक अलग रहते हैं, जब तक कि उन्हें दूसरों के साथ अंतः क्रिया करना न सिखाया जाए इनमें प्रायः पुनरावृति व्यवहार, स्वयं को आघात पहुंचाना, आक्रमणात्मक ( आक्रोशित) व्यवहार देखने को मिलते हैं
दृष्टिबाधित मानसिक मंद बच्चों हेतु शैक्षिक नीतियां—
इन बच्चों के लिए किसी भी कार्यक्रम को लागू करते समय कुछ विशेष बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए
- सभी बच्चे सीख सकते हैं:- कोई भी बच्चा अपनी विकलांगता के बावजूद भी सीख सकता है उसे सिखाने का उत्तरदायित्व अध्यापक तथा शैक्षिक कार्यक्रमों पर है ।
- बच्चे को उसके स्तर के अनुसार सामग्री प्रदान की जाए:- इन बच्चों को सिखाते समय बच्चे के मानसिक स्तर के अनुसार शिक्षण सामग्री प्रदान की जानी चाहिए जो बालकों को समझने में आसान रहे और सीखने के लिए प्रोत्साहित करें
- सरल कार्यों में उपक्रियाएं शामिल करना :-अति सरल क्रियाएं जैसे— दैनिक जीवन कौशल सिखाने के लिए इन्हें उप क्रियाओं में बांट देना चाहिए शिक्षणीय मानसिक मंद बच्चों को शिक्षा प्रदान करते समय ऐसी अनेक क्रियाएं कराई जानी चाहिए।
- ठीक प्रकार से पुनर्बलन प्रदान करना :- यह पुनर्बलन प्रशंसा या पुरस्कार के रूप में हो सकता है किसी कार्य को स्वयं कर लेने पर पुनर्गेन अवश्य दिया जाए।
- हर बच्चा एक दूसरे से भिन्न है :- बच्चों में दृष्टिबाधा तथा मानसिक मंदता की मात्रा अलग-अलग हो सकती है इसलिए बच्चों की व्यक्तिगत विभिन्नताऔ को ध्यान में रखते हुए यह किसी कार्य को कराते समय उसके पदों में अंतर रखना आवश्यक होता है।
- कार्य सिखाने से पहले मूल्यांकन:- कुछ भी सिखाने से पहले बच्चे के वर्तमान स्तर को जानना, उसकी क्षमताओं तथा सीमाओं को समझना अत्यंत आवश्यक है।
- मानसिक ममता से कार्य निष्पादन प्रभावित होता है दृष्टिबाधा होने से यह समस्या और जटिल हो जाती है, क्योंकि दृष्टिबाधा से सूचना प्राप्ति में सीमाएं जाती है अतः दृष्टिवान मानसिक मंद बच्चों की अपेक्षा इन बच्चों को अपनी शेष इंद्रियों पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है।
8. इन बच्चों को किसी भी कौशल को सिखाने के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीकी instructional prompts ' है। यह prompts या सहायता के प्रकार तथा स्तर भिन्न भिन्न हो सकते हैं जैसे-
- वातावरणीय संकेत:- छुट्टी की घंटी संकेत देती है, अब घर जाना है।
- शारीरिक मुद्रा संकेत:- अंगुली से इशारा करना, सहमति सूचक सिर हिलाना।
- मौखिक संकेत ( अप्रत्यक्ष) :- एक शब्द अथवा वाक्यांश से इशारा करना।
- मौखिक संकेत (प्रत्यक्ष) :- बच्चों को सीधा बोल कर संकेत देना।
- स्पृशीय संकेत:- वस्तुओं, प्रतीक, ब्रेल में लिखे शब्द।
- मॉडल संकेत:- अनुकरण के लिए प्रदर्शन करना।
- पूर्ण दैहिक संकेत :- पुण्य कार्य में पकड़ कर इशारा करना
8. कर्मिक मार्गदर्शक ( graduated guidance) :- यह एक अन्य रणनीति है जिसमें पहले अधिक मात्रा में सहायता से क्रमशः कम सहायता की तरफ बढ़ा जाता है।
9. एक अन्य तकनीक shaping का प्रयोग भी दृष्टिबाधित मानसिक मंद बच्चों के लिए किया जाता है । इस विधि में लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बच्चों को हर सही प्रयास को पुनर्बलन दिया जाता है ।
10. Chaining :- इसमें सबसे पहले सिखाई जाने वाली दक्षता को छोटे-छोटे भागो में बाटा जाता है, और एक बार में एक पद सिखाया जाता है।
अध्यापक के लिए ध्यान देने योग्य बातें :-
- सही कार्य या प्रयास पर तुरंत पुनर्बलन प्रदान किया जाए।
- उपयुक्त पुनर्बलन चुनने के लिए अध्यापक बच्चे की पसंद- नापसंद पर ध्यान दें।
- जब बच्चा किसी दक्षता या कौशल को सीख ले तो उसका अभ्यास करने के लिए अलग-अलग परिस्थितियों का निर्माण किया जाना चाहिए।
- दक्षताओं का सामान्यीकरण किया जाए: जिससे बालक उन्हें ध्यान रख सके।
- दक्षताओं को चुनती हुए अध्यापक आंशिक भागीदारी के सिद्धांत को ध्यान में रखें।
- पाठ्यक्रम अनुकूलन करके शिक्षित करना।