2.4 Speech and Language Disorder वाणी और भाषा विकार

Paper — understand to DISABILITY 
Unit-2.4
Speech and Language Disorder वाणी और भाषा विकार 



मानव जीवन में वाणी एवं भाषा की बहुत ही महत्वपूर्ण उपयोगिता है। वाणी व सार्थक प्रक्रम है जिसके द्वारा मानव और पशुओं में भिन्नता स्थापित की जा सकती है। वाणी उत्पादन एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है, जो कि विभिन्न व्यवस्थाओं श्वशन संवहन उच्चारण तथा नियंत्रण आदि प्रक्रियाओं से गुजरते हुए पूर्ण होती है। अबात हम यह कह सकते हैं कि उपरोक्त वाणी उत्पादित करने वाले व्यवस्थाओं में यदि किसी प्रकार की विकृति उत्पन्न होती है तो स्वाभाविक है कि उसका प्रभाव व्यक्ति की वाणी और भाषा में विकार की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। हम कह सकते हैं कि वाणी भाषा का रूप है जो कि ध्वनि की उपस्थिति में निकलती है। व्यक्ति अपनी सभी संवेदनाओं भावों को व्यक्त करने के लिए वाणी का ही उपयोग करता है।

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भाषा मानव जीवन की यह कही है जो कि पूरे संसार को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है. व्यक्ति समाज की एक कड़ी होता अर्थात वाणी एवं भाषा समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच संपर्क बनाने का कार्य करती है। इसके साथ ही भाषा सामाजिकरण की प्रक्रिया में सहायक होती है। इतना ही नहीं भाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श संपर्क व व्यवहार का साधन भी है। सूचनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम की भाषा ही है।

भाषा (Language) :-भाषा एक ऐसी संकेत व्यवस्था है। जिसके माध्यम से एक व्यक्ति अपने विचारों भावों एवं इच्छाओं को दूसरे के सामने अभिव्यक्त करता है। प्रत्येक ऐसा संकेत जो विचार को स्पष्ट करता है, यह भाषा है।

इसका प्रयोग सुव्यवस्थित संकेतों की व्यवस्था है। जिसका प्रयोग संप्रेषण अर्थात विचारों यह सूचना के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है। सामान्य रूप से भाषा संप्रेषण करने का माध्यम है और यह संप्रेषण भाषा उपस्थित संकेतों के द्वारा संभव है हमारी वाणी, शरीर, हाव भाव व्यक्त करना आदि शब्द भाषा के ही रूप है किंतु संकेत पूर्ण भाषा नहीं है।

नोम चोम्स्की के अनुसार :- जब हम भाषा का अध्ययन करते हैं तब हम उसे तथ्यों को देखते हैं जो मनुष्य में ही पाए जाते है अर्थात ये लक्षण

जो विशिष्ट रूप से मनुष्य में ही देखे गए हैं और जो मानव और पशु में भिन्नता स्थापित करते हैं।

भाषा की परिभाषा : विभिन्न विद्वानों ने भाषा को अपने अपने तरीके से विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है। जिनमें से कुछ परिभाषा इस प्रकार है।
स्वीट के अनुसार ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारो वक्त करना ही भाषा है।

डॉक्टर बाबूराम सक्सेना के अनुसार:- एक प्राणी जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा दूसरे प्राणी से कुछ व्यक्त कर देता है यही विस्तृत अर्थ में भाषा है।

भाषा दोष: भाषा संबंधी विकार किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकती है बच्चे की भाषा विकास के लिए उनकी शारीरिक, बौधात्मक, संवेगात्मक, सामाजिक वातावरणीय, एवं अन्य पहलुओं को ध्यान में रखना होता है, क्योंकि भाषा का विकास इन्हीं पहलुओं पर निर्भर करता है। इन पहलुओं करती है। बच्चे में कोई कमी होती है तो संभवतः भाषा संबंधी विकार उत्पन्न हो सकता है।
बच्चों में सामान्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार के भाषा संबंधी विकार पाए जाते हैं जो भाषा की क्रियाशीलता पर निर्भर करती है।

1. भाषण ग्रहण करने में कठिनाई।

2. भाषा अभिव्यक्त करने में कठिनाई।

3. मिश्रित समस्या।

1. भाषा ग्रहण करने में कठिनाई:- भाषा ग्रहण करने की समस्या तब उत्पन्न होती है जब बच्चे में किसी आदेश या निर्देश को समझने की क्षमता उसकी मानसिक आयु से नीचे पाई जाती है। तो यह समझा जाता है कि उसमें भाषा को ग्रहण करने संबंधी समस्या है।

2. भाषा अभिव्यक्त करने में कठिनाई - भाषा को व्यक्त करने संबंधी समस्या का आकलन प्रायः हम कुछ इस प्रकार के कारणों से करते हैं। जब हम देखते हैं कि बच्चे बहुत से शब्दों का ज्ञान रखते हैं, उनको समझते है, किंतु इन शब्दों को मौखिक रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं।

अर्थात इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब किसी बच्चे में अपनी भावनाओं, बातों को अभिव्यक्त करने की क्षमता, ग्रहण करने की क्षमता से कम पाई जाए तो उसमें भाषा को अभिव्यक्त करने संबंधी समस्या है।

3. मिश्रित समस्या - जब किसी व्यक्ति अथवा बच्चे में उपयुक्त दोनों समस्याएं एक साथ पाई जाए तो हम यह कह सकते हैं कि बच्चे में मिश्रित समस्या है। इसमें भाषा ग्रहण शीलता और भाषा को मौखिक रूप से अभिव्यक्त करने दोनों में कठिनाई होती है। प्रायः यह देखा जाता है कि कुछ बच्चों में भाषा विकास देर से होता है ऐसी स्थिति में बच्चे की मानसिक आयु से उसकी भाषा ग्रहण शीलता की आयु होती है और उसके नीचे भाषा अभिव्यक्ति का स्तर पाया जाता है, तो हम उस व्यक्ति जब बच्चे को मिश्रित समस्या के अंतर्गत रख सकते हैं।

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वाणी (speech) :-

शरीर के विभिन्न अंगों की तरह वाणी को उत्पादित करने वाले अंग भी होते हैं।

जिस प्रकार से मनुष्य जीवित रहने के लिए अपना प्राथमिक कार्य करता है उस तरह से वाणी उत्पाद करने वाले अंगों के द्वारा द्वितीय कार्य वाणी उत्पादित करता है। भाषा का मौखिक रूप वाणी है जो मनुष्य के जीवन में संप्रेषण का मुख्य साधन है। यह व्यक्ति एवं समाज के बीच संबंध बनाने वाली एक आधार है वाणी ही हमारे जीवन का एक आधारभूत अंग है जिसकी सहायता से हम अपने विचारों एवं भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इससे आत्मविश्वास में वृद्धि के साथ आत्म संतुष्टि मिलती है।

परिभाषा :-

"किसी भी अर्थपूर्ण शब्द को वाणी कहते हैं। प्रत्येक वाणी की अपनी विशेषताएं होती हैं। वाणी वह प्रक्रिया है।" है जो ध्वनि की उपस्थिति में निकलती हैं।

वाणी दोष: वाणी की उत्पत्ति के लिए हमारे वाणी उत्पादन में संलग्न विभिन्न चरणों क्रिया का सामान्य होना अत्यंत आवश्यक है। वाणी उत्पादन के लिए वोकल कार्ड मुखाग्र एवं नासाग्र भाषा तथा विभिन्न विचारकों का मान रूप से कार्य करना अनिवार्य है। इसके साथ साथ श्रवण सीमा एवं मानसिक क्षमता का सामान्य होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि जो कुछ हम बोलते हैं या सीखते हैं उसे पहले अच्छी तरह सुनते एवं समझते हैं। यदि सुनने एवं समझने में किसी प्रकार की कमी हो तो अक्षर एवं शब्दों का सुनना एवं समझना कम हो जाता है, जिसके कारण वाणी उत्पादित करने में त्रुटि होने लगती है।

वाणी दोष का वर्गीकरण - वाणी की त्रुटियों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है जिसके द्वारा संपूर्ण वाणी समस्या को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

1. उच्चारण संबंधी दोष

2. वाणी संबंधी दोष

3. वाक प्रवाह संबंधी दोष

4. कंठ संबंधी दोष

1. उच्चारण संबंधी दोष :- बच्चों में एवं वयस्कों में उच्चारण संबंधी दोष अधिकतर पाए जाते हैं ये दोष निम्न है 

क. प्रतिस्थापन ( Substitution)

ख. छोड़ना (Omission )

ग. अशुद्ध बोलना (Distartion)

घ. जोड़ना (Addition)

क. प्रतिस्थापन : उच्चारण के समय किसी भी एक अक्षर को ना बोलकर उसके स्थान पर दूसरा अक्षर बोलना । जैसे:- कमला के स्थान पर तमला, कुत्ता के स्थान पर तुत्ता आदि यह उच्चारण के दोष शब्दों के शुरू या अंत के स्थान पर ज्यादातर देखे जाते हैं।

ख. छोड़ना :- इस दोष के अंतर्गत बच्चे शब्द के शुरू या अंत के अक्षर को नहीं बोलते या बोलना भूल जाते हैं जैसे प्रदीप को दीप, कालम को काल आदि ।

ग. अशुद्ध बोलना :- इस दोष के अंतर्गत बोले गए अक्षर या शब्द में स्पष्टता नहीं होती है जिससे श्रोता को बार-बार पूछना पड़ता है।

घ जोड़ना :- इस दोष के अंतर्गत किसी भी अर्थपूर्ण शब्द में एक दूसरे अक्षर को प्रायः जोड़ देते हैं जैसे:- कमल को कमला ।


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2. वाणी संबंधी दोष :- हमारी वाणी मुख्यतः तीन तत्वों से मिलकर बनी होती है तारत्व (Pitch) गुण (Quality) उच्चता (Loudness) । जितनी अधिक आवृत्ति होगी उतना अधिक तारत्व भी होगा । वाणी की उच्चता कम या अधिक हो सकती है। इन तीनों में यदि किसी भी प्रकार की कमी पाई जाती है तो वाणी दोष हो सकते हैं।

3. वाक् प्रवाह संबंधी दोष:- वाणी के प्रवाह से तात्पर्य है कि उस व्यक्ति की वाणी कितनी धारा प्रवाह या बिना रुके हुए एवं बिना किसी अक्षर शब्दों को दोहराते हुए बोलना होता है यदि व्यक्ति रुक रुक कर बोलता है अथवा कुछ शब्दों व उसके भागों को दोहराता है तो यह प्रवाह संबंधी दोष कहलाता है।

4. कंठ संबंधी दोष :- इसके अंतर्गत अनेकों प्रकार के दोष आते है हकलाना, स्वरभ्रम रूखी आवाज, श्वास भरकर बोलना, ऊंचे स्वर का दोष आदि ।

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