Basic understanding of intellectual disability, definition, meaning and description, (concept, aetiology, prevalence, incidence, historical perspective cultural perspective, myths, recent trends and updates) बौद्धिक अक्षमता की बुनियादी समझ - परिभाषा, अर्थ और विवरण, (अवधारणा,एटिओलॉजी, व्यापकता, घटना, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य, मिथक, हाल के रुझान और अपडेट)

 Unit: - 4.1
Basic understanding of intellectual disability, definition, meaning and description, (concept, aetiology, prevalence, incidence, historical perspective cultural perspective, myths, recent trends and updates) बौद्धिक अक्षमता की बुनियादी समझ - परिभाषा, अर्थ और विवरण, (अवधारणा,एटिओलॉजी, व्यापकता, घटना, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य, मिथक, हाल के रुझान और अपडेट) 

–बौद्धिक अक्षमता एक स्थिति है जो विभिन्न और अज्ञात कारणों से मस्तिष्कीय कोशिका के क्षतिग्रस्त होने की परिणाम स्वरूप उत्पन्न होती है इसके कारण मानसिक एवं शारीरिक विकास अपेक्षाकृत कम होता है । सभी मानसिक मंद बच्चे एक जैसे नहीं होते । सभी गंभीरता का स्तर एवं समस्याएं अलग-अलग होती हैं।


मानसिक मंदता की अनेक परिभाषाएं हैं, उनमें सबसे अच्छी, विश्लेषणात्मक और सारांश आत्मक परिभाषा अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेंटल रिटार्डेशन द्वारा दी गई है।

"मानसिक मंदता सामान्य बौद्धिक क्रियाशीलता के औसत स्तर में कमी को अर्थपूर्ण तरीके से बताता है और क्षति के परिणाम स्वरूप अनुकूल व्यवहार में कमी विकासात्मक अवधि के दौरान स्पष्ट रूप से दिखाई देती है ।"


सामान्य बौद्धिक क्रियाशीलता के औसत स्तर में कमी का तात्पर्य है कि व्यक्ति की औसत बुद्धि कितनी है, अर्थात सामान्य से कितना कम है?


औसत बुद्धि लब्धांक 100 माना गया है । औसत स्तर में कमी अर्थात 90 से कम बुद्धि - लब्धि का होना है । परिभाषा के दूसरे पहलू में अनुकूल व्यवहार की चर्चा है । अनुकूल व्यवहार तात्पर्य किसी व्यक्ति का वह सांस्कृतिक समूह जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता सामाजिक जिम्मेदारियाँ जो उसकी आयु समूह से अपेक्षित हैं, उसका निर्वहन करने की क्षमता या स्तर से है । अनुकूल व्यवहार में कमी का तात्पर्य है कि उसके आयु समूह के अनुसार जो उससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारियों की अपेक्षा करते हैं, उसमें वह कम है । उदाहरण के लिए एक 10 वर्ष के लड़के से उम्मीद करते हैं कि वह अपना दैनिक जीवन के क्रिया - कलाप सम्बन्धी कौशल ( भोजन करना ब्रश करना शौच करना स्नान करना आदि ) में व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्र हो अर्थात स्वयं करता हो तथा उसे रुपयों ६ पैसों की पहचान हो । यदि वह स्वयं देख रेख सबन्धी कार्य नहीं कर पाता है एवं रुपये पैसों को नहीं पहचानता है तो उसके अनुकूलन व्यवहार में कमी मानी जाती है ।


परिभाषा का तीसरा पहलू विकासात्मक अवधि से है जिसे गर्भधारण से 18 वर्ष तक की आयु से स्पष्ट करते हैं

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अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेण्टल डिफीसिएन्सी का नाम अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेण्टल रिटार्डेशन के रूप में परिवर्तित होने के बाद मानसिक मंदता को समय- समय पर अलग- अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है, जिसका वर्णन इस प्रकार है


AAMR 1983 के अनुसार :- मानसिक मंदता का तात्पर्य सामान्य बौद्धिक क्रियाशीलता के औसत स्तर में अर्थपूर्ण कमी से है जिसके परिणाम स्वरूप अनुकूलन व्यवहार में क्षति होती है और यह विकास की अवधि के दौरान अभिव्यक्त होता है। "


AAMR 2002 के अनुसार :- " मानसिक मंदता एक अक्षमता है जिसमें बुद्धि लब्धि एवं अनुकूलन व्यवहार दोनों सीमित हो जाते हैं, जो वैचारिक, सामाजिक तथा व्यवहारिक कौशलों में प्रदर्शित होता है। यह अक्षमता 18 वर्ष की उम्र से पहले होती है।


मानसिक मंदता की व्यापकता ( Prevalence of Mental Retardation ):- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन ( 1991 ) के अनुसार पूरी आबादी का लगभग 2-3 प्रतिशत व्यक्ति मानसिक रूप से मंद है । भारत में मानसिक

मंदता की व्यापकता निर्धारित करने के लिए कोई व्यवस्थित राष्ट्रीय सर्वेक्षण नहीं किया गया है । राष्ट्रीय सर्वेक्षण (2001 ) भी मानसिक मंदता के सर्वेक्षण के लिए असफल रहा है । ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि हमारे देश में 2 करोड़ अतिअल्प मानसिक मंद है तथा लगभग 40 लाख लोग अल्प एवं गम्भीर रूप से मानसिक मंदता से ग्रसित हैं ।


मानसिक मंदता की रोकथाम ( Prevention of Mental Retardation ) :- सामान्य तौर पर कहा जाता है कि थोड़ी सी रोक - थाम बड़े उपचार से अधिक महत्वपूर्ण है । इसलिए मानसिक मंदता से बचने के लिए विभिन्न स्थितियों में तरह – तरह की सावधानी बरतने हेतु सुझाव दिया जाता है । विभिन्न अवस्थाओं में यह सावधानियाँ अलग - अलग तरीके से रखनी चाहिए । ये महत्वपूर्ण अवस्थाएं इस प्रकार हैं

1. गर्भधारण से पहले की अवस्था ।

2. गर्भकालीन अवस्था ।

3. प्रसव के दौरान की अवस्था ।

4. प्रसव के उपरान्त की अवस्था ।


1. गर्भधारण से पहले की अवस्था में रोकथाम के उपाय—किसी भी बच्चे को जन्म देने के लिए न सिर्फ माता - पिता को शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं परिपक्व होना चाहिए बल्कि मानसिक रूप से तैयार होना आवश्यक होता है । इस अवस्था में ध्यान देने योग्य कुछ अन्य बातें इस प्रकार हैं


➤ सबसे पहले माँ बनने की आयु 20-30 वर्ष के बीच होनी चाहिए ।

➤ माँ की कम या अधिक आयु मानसिक मंदता का जोखिम बढ़ाती है ।

➤ सगे- सम्बन्धियों ( खून के रिश्ते ) में शादी नहीं करनी चाहिए ।

➤ शादी से पहले रक्त समूह की जाँच कराना अनिवार्य होता है ।

➤ अनुवांशिक परामर्श भी मंदबुद्धि बच्चे होने की सम्भावना को कम कर सकता है ।


2. गर्भकालीन अवस्था में रोक - थाम के उपाय - यह बच्चे के लिए सबसे अधिक संवेदी अवस्था होती हैं । चिकित्सकीय तौर पर इसे तीन भागों में बांटा गया है ।

(क) प्रथम त्रैमासिक ( ट्राइमेस्टर ) — गर्भ धारण से 3 माह की अवधि ।

(ख) द्वितीय त्रैमासिक (ट्राइमेस्टर )— गर्भावस्था की 3-6 माह की अवधि

(ग) तृतीय त्रैमासिक ( ट्राइमेस्टर ) — गर्भावस्था की 6–9 माह की अवधि ।


उपरोक्त तीनों ट्राइमेस्टर में प्रत्येक का महत्व एक दूसरे से कम नहीं है, परन्तु प्रथम ट्राइमेस्टर ज्यादा संवेदनशील होता है । इसमें स्वतः गर्भपात एवं रक्तपात की सम्भावना बनी रहती है । गर्भावस्था में ध्यान देने योग्य अन्य महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं।


➤ गर्भावस्था में समय-समय पर गर्भवती महिला की चिकित्सकीय जांच अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है । ऐसे में यदि किसी तरह की असामान्यता बीमारी एवं संक्रमण होता तो इससे बचा जा सकता है ।

➤ प्रारम्भिक जाँच के अन्तर्गत रक्त, मूत्र एवं रक्तचाप आदि का जाँच अनिवार्य है । रक्त जाँच द्वारा हीमोग्लोबिन का प्रतिशत तथा गर्भवती स्त्री के रक्त समूह की जांच भी करते है ताकि जरूरत पड़ने पर रक्तदान में मदद हो सके । आर.एच. फैक्टर ऋणात्मक या धनात्मक है, इसकी जांच भी की जाती है । एल्बुमिन की मात्रा मूत्र जाँच द्वारा पता किया जाता है। इसमें असामान्य होने से तुरंत उपचार द्वारा विषाक्तता से बचा जा सकता है ।


➤ पोषाहार पर ध्यान देना चाहिए- विशेषकर भोजनों में आयरन प्रोटीन, विटामिन युक्त आहार की प्रचुरता होनी चाहिए ।

➤ समय पर आवश्यक टीके लगवाना चाहिए | 

➤ संक्रमण से बचना चाहिए- विशेषकर मीजल्स रूबेला और सिफलिस से ।

➤ अनावश्यक एवं बिना परामर्श के दवा लेने से बचना चाहिए ।

➤ शराब एवं तम्बाकू के उपयोग से बचना चाहिए ।

➤ अत्यधिक शारीरिक कार्य एवं मानसिक तनाव से बचना चाहिए ।

➤ एक्स - रे एवं रासायनिक पदार्थ से बचना चाहिए ।

➤ यदि गर्भपात कराना अनिवार्य हो तो योग्य चिकित्सक से कराना चाहिए ।

➤ शारीरिक चोट, स्कूटर की सवारी या लम्बे सफर से बचना चाहिए ।

➤ यदि पहले से अनुवांशिकता की समस्या वाली संतान रही हो तो इससे सम्बन्धित परीक्षण हेतु सम्पर्क करना चाहिए ।

➤ गर्भवती स्त्री को पर्याप्त आराम, नींद और शुद्ध हवा की जरूरतों को पूरा करना चाहिए ।


3. प्रसव के दौरान रोक - थाम के उपाय - कुशल एवं साफ - सुथरा प्रसव के लिए सही एवं साधनयुक्त जगह का चुनाव करना आवश्यक होता है । बच्चे एवं माँ के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रसव के समय निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए ।

➤ मानसिक मंदता की रोक - थाम हेतु प्रसव के दौरान अच्छी देख - भाल आवश्यक है ।

➤ प्रसव के समय मस्तिष्क को चोट पहुँचने से बचाना चाहिए । प्रसव के समय औजार के प्रयोग से सिर में चोट की सम्भावना रहती है, इस स्थिति से बचाना चाहिए ।

➤ प्रसव प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों से ही करवाना चाहिए ताकि जटिल स्थिति से बचा जा सके ।

➤ यदि गर्भाशय में गर्भ की स्थिति असामान्य है या बहुत लम्बे समय से दर्द हो रहा है तो योग्य चिकित्सक से

ही प्रसव कराना चाहिए ।

➤ जन्म के समय अनावश्यक दवा या ऑक्सीटोसिन दवा का अनुचित प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

➤ अनावश्यक मालिश वगैरह से बचाना चाहिए ।


4. प्रसव के उपरान्त रोक - थाम के उपाय प्रसव के उपरान्त बच्चे का सही देख - भाल, खान-पान एवं पालन— पोषण आवश्यक होता है । अतः ऐसे समय में शिशु के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए ।

➤ नवजात शिशु के सिर को चोट से बचाना चाहिए ।

➤ शिशु के पोषण के लिए जन्म के बाद जाँच पड़ताल के तुरन्त बाद से ही माँ का दूध देना चाहिए । इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और बहुत सारी बीमारियों से बच्चे की सुरक्षा होती है ।

➤ जन्म के बाद पहले सप्ताह से ही टीकाकरण शुरू हो जाता है। बी.सी.जी. पोलियो, खसरा, काली खांसी एवं हेपेटाइटिस — बी के टोके समयानुसार लगवाते रहना चाहिए। जन्म के बाद पहले सप्ताह से टीके टीकाकरण

➤ बच्चे को अति ज्वर से बचाना चाहिए।

➤ यदि तेज बुखार हो तो ठंडे पानी की पट्टियों का उपयोग करना चाहिए

➤ सफाई का ध्यान देते हुए संक्रमण से बच्चे की सुरक्षा करनी चाहिए ।

➤ यदि बच्चे की विकास प्रक्रिया धीमी हो तो चिकित्सक से उचित सलाह लेनी चाहिए ।

➤ बच्चे का सही पोषण समय पर टीकाकरण एवं व्यक्तिगत सफाई इत्यादि विभिन्न मुद्दों पर ध्यान देकर मानसिक मंदता से बचाव किया जा सकता है ।


1. फैजाइल एक्स सिन्ड्रोम (Fragile & X & Syndrome ) :- यह गुणसूत्रीय विकृति से सम्बन्धित स्थिति है जिससे पीड़ित व्यक्तियों में मानसिक मंदता के लक्षण दिखाई पड़ते हैं । इसकी पहचान सर्वप्रथम 1943 ई. में हुआ था, लेकिन इसकी औपचारिक पहचान एवं चर्चा में आना 1978 ई. में शुरू हुआ । लुब्स ( Lubs ) ने सर्वप्रथम 1868 ई. में फैजाइल एक्स स्थान ( Fragile X & site ) को खोजा था । डाउन सिन्ड्रोम के बाद मानसिक मंदता के नैदानिक प्रकारों में यह प्रमुख है । यह एक प्रमुख कारण है, जिससे मानसिक मंदता पुरुषों में अधिक होती है । इसकी उत्पत्ति एक्स गुणसूत्र के अनुपयुक्त निर्माण के कारण होता है । इसमें एक्स गुणसूत्र छोटी बाँह का सिरा संकुचित ( Restricted ) दिखाई देता है । वर्तमान में उस स्थान ( Region ) की खोज कर ली गयी है, जो कि इसके लिए उत्तरदायी जीन को रखता है । इस जीन की व्यापकता दर पुरुषों में 1500 में 1 तथा स्त्रियों में 1000 में 1 है । इसकी निदान या पहचान जन्म के पूर्व भी किया जा सकता है, लेकिन प्राय नैदानिक तौर पर इसकी पहचान प्रारम्भिक बाल्यावस्था में विकासात्मक हास या बढ़े कान के अवलोकन के आधार पर किया जाता है ।


लक्षण - इसके सामान्य लक्षणों में प्रमुख हैं- जबड़ा का बड़ा होना ( Promninent Jaws ), मैक्रोआर्चडिस्म ( Macroorchdism ) लम्बा एवं पतला चेहरा लम्बा एवं मुलायम कान एवं हाथ सिर के अग्रभाग ( Forehead ) का बड़ा होना सिर का अपेक्षाकृत बड़ा होना इत्यादि । इससे पीड़ित बच्चों में मानसिक मंदता के लक्षण भी देखने को मिलते हैं । ऐसे व्यक्तियों में बुद्धिलब्धि का स्तर प्रायः तीव्र से लेकर अतितीव्र के बीच होता है । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें बुद्धिलब्धि का सामान्य स्तर भी दिखायी देता है । फैजाइल - एक्स सिन्ड्रोम से ग्रसित पुरुषों में नपुंसकता के लक्षण भी देखने को मिलते हैं । इससे पीड़ित स्त्रियाँ इसकी वाहक होती हैं । वे

केवल इस स्थिति को दूसरी पीढ़ी हेतु संचरण में सहायक होती हैं । इससे ग्रसित कुछ बच्चों में स्वलीनता के भी लक्षण देखने को मिलते हैं । इसमें लगभग 5.6 प्रतिशत लोगों एवं सम्प्रेषण से सम्बन्धित विकृति भी दिखायी देती हैं।


उपचार - अभी तक मानसिक मंदता की इस स्थिति का कोई उपचार सम्भव नहीं हो पाया है, परन्तु वर्तमान समय में इसके उपचार के लिए फोलिक अम्ल (Folic Acid) चिकित्सा प्रविधि का उपयोग किया जा रहा है ।


5. डाउन सिन्ड्रोम ( Down Syndrome ) = इसकी चर्चा सर्वप्रथम मंगोलिज्म के रूप में 1966 में मिलती है । इसकी चर्चा सर्वप्रथम लैंगडॉन डाउन (Langdon Down ) ने किया था । अनुवांशिक कारकों द्वारा निर्धारित मानसिक मंदता के विभिन्न प्रकारों में यह सबसे प्रमुख एवं सामान्य है । मानसिक मंदता से ग्रसित व्यक्तियों में इसकी व्यापकता दर 5.6 प्रतिशत है । विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि इस विकृति का मुख्य कारण ट्राईसोमी स्थिति (Trisomy Condition ) है जो गुणसूत्र के 21 युग्म में देखने को मिलती है । इसमें कोशिका विभाजन

के दौरान गुणसूत्र पूरी तरह से अलग नहीं हो पाता तथा कोशिका में एक गुणसूत्र की संख्या बढ़ जाती है । अतः यहाँ गुणसूत्र की संख्या 46 के बजाय 47 होती है । यह विकृति मुख्यरूप से अधिक उम्र में गर्भधारण, औषधि तथा विकिरणों के प्रभाव, रासायनिक तत्वों का सेवन, विषाणुओं के संक्रमण इत्यादि कारणों से उत्पन्न होता है । मुख्य रूप से तीन प्रकार की गुणसूत्रीय विकृति डाउन सिन्ड्रोम को उत्पन्न करती है, ये हैं 


(क) ट्राईसोमी 21 ( Trisomy – 21 ) - इसमें मिओसिस ( Meiosis) कोशिका विभाजन के दौरान गुणसूत्र पूरी तरह से अलग नहीं हो पाता तथा प्रत्येक कोशिका में एक गुणसूत्र की संख्या बढ़ जाती है अर्थात् गूणसूत्र की संख्या 47 हो जाती हैं। यह अवस्था मुख्य रूप से माता के गर्भधारण करने की अवस्था से जुड़ी रहती है ।


(ख) ट्रांसलोकेशन टाइप ( Translocation Type ) - इस विकृति की उत्पत्ति दो अलग- अलग गुणसूत्रों के युग्मन (Fusion ) से होती है । यह युग्मन मुख्यतः 13.15 गुणसूत्र एवं 21 वें गुणसूत्र के बीच होता है । यह एक अनुवांशिक स्थिति होती है । इसका सम्बन्ध माता के गर्भाधारण की अवस्था से सम्बन्धित नहीं होता है ।


(ग) मोजेसिज्म (Mosaicism ) 1 - यह एक ऐसी गुणसूत्रीय विकृति है, जिसमें कोशिका का विभाजन पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है तथा व्यक्ति के अन्दर दो तरह की कोशिकाओं का निर्माण होता है । कुछ कोशिका में 47 गुणसूत्र होते हैं तथा कुछ में 46 गुणसूत्र होते हैं । इस प्रकार से व्यक्ति में सामान्य एवं ट्राईसोमी कोशिका का मोजेक दिखायी देता है । लक्षण – इनमें हृदय सम्बन्धी विकृति पेशीयटोन ( Muscle Tone) में कमी श्वसन सम्बन्धी विकृति, लैंगिक अपरिपक्वता इत्यादि के लक्षण देखने को मिलते हैं । अध्ययनों में पाया गया है कि वर्तमान समय में इन बच्चों का जीवनकाल ( Lifepespan) बढ़ता जा रहा है । पैटरसन ( Patterson, 1987 ) – के अनुसार इनका जीवनकाल 1 से बढ़कर 30 वर्ष चिपटा तक पहुँच गया है । ऐसे व्यक्तियों में मुख्य रूप से मध्यम स्तर की मानसिक मंदता देखने को मिलती है । छोटा कद एवं चौड़ा चेहरा छोटा कान एवं नाक चौड़े हाथ एवं छोटी घुमावदार अंगुलियाँ हथेली पर एक लम्बी एवं गहरी लकीर हाइपोटोनिया, अतिलचीलापन, अनुपयुक्त लैंगिक विकास, छोटा सिर घुमावदार एवं लम्बी जीभ इत्यादि प्रमुख शारीरिक विशेषताएं हैं । इसके अतिरिक्त ऐसे बच्चों में स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ विकृतियाँ भी पायी जाती हैं, जैसे- ल्यूकेमिया कान एवं नेत्र सम्बन्धी संक्रमण मोटापन त्वचा सम्बन्धी विकृति स्मृति सम्बन्धी विकृति, इत्यादि ।


उपचार — इनके उपचार में अतिशीघ्र हस्तक्षेप के साथ - साथ वर्तमान समय में प्लास्टिक सर्जरी का बहुत उपयोग किया जा रहा है । इसके अतिरिक्त अनुवांशिकी परामर्श भौतिक एवं शारीरिक शिक्षा उपचार, शारीरिक अभ्यास तथा जैविक चिकित्सा इत्यादि का उपयोग किया जाता है ।


4. प्राडर विली सिन्ड्रोम ( Prader Willi Syndrome) :- यह भी गुणसूत्रीय विकृति से सम्बन्धित स्थिति जो मानसिक मंदता को उत्पन्न करती है । इसका मुख्य कारण 15 वें गुणसूत्र में आंशिक कमी (Deletion ) होता है । इस कमी में गुणसूत्र में पाये जाने वाले कुछ मूलतत्व अनुपस्थित होते हैं । इसे अन्तःस्रावी ग्रन्थि की विकृति भी मानी जाती है ।


लक्षण - इससे ग्रसित बच्चों में गामक एवं बौद्धिक विकास देर से होता है इनमे लैंगिक विकास अपरिपक्व होता है । इनमें अधिक भूख लगना, छोटा कद, अल्प से मध्य स्तर की मानसिक मंदता एवं अधिगम अक्षमता इत्यादि लक्षण भी देखने को मिलते हैं । इन बच्चों को भूख अधिक लगती है तथा खाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । इसी कारण इस स्थिति को प्राडर विली सिन्ड्रोम कहते हैं।


उपचार- इसके उपचार एवं प्रबन्धन की दिशा में भी शोध जारी है । इसके प्रबन्धन में आरम्भिक हस्तक्षेप खान पान सम्बन्धी हस्तक्षेप, अधिक कैलोरी वाले खाने की चीज पर रोक प्रमुख हैं ।

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