Chronic Neurological conditions and Blood Disorders जीर्ण तंत्रिका संबंधी स्थितियां और रक्त विकार

 Unit-3.5
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Chronic Neurological conditions and Blood Disorders जीर्ण तंत्रिका संबंधी स्थितियां और रक्त विकार 


भारत में आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 मान्यता प्राप्त विकलांगताओं में से एक क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन को माना जाता है।

क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल शर्तों की परिभाषा और अर्थ 4 जुलाई 2018 सामाजिक न्याय मंत्रालय की अधिसूचना और अधिकारिता नीचे दी गई परिभाषा दी


क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन, जैसे-


(i) " मल्टीपल स्केलेरोसिस" का अर्थ एक सूजन तंत्रिका तंत्र की बीमारी है

मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की तंत्रिका कोशिकाओं के अक्षतंतु के आसपास माइलिन म्यान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे डेमिलीना होता है मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं की एक दूसरे के साथ संवाद करने की क्षमता पर प्रभाव डालना ।


(ii ) " पार्किंसंस रोग " का अर्थ है तंत्रिका तंत्र का एक प्रगतिशील रोग जो कंपन, पेशीय कठोरता और धीमी गति से, गलत गति से चिह्नित होता है, जो मुख्य रूप से अधेड़ और वृद्ध लोगों । प्रभावित करता है जो बेसल गैन्ग्लिया के अध: पतन से जुड़े होते हैं । मस्तिष्क और न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन की कमी । 


तंत्रिका संबंधी विकार केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका के रोग हैं । दूसरे शब्दों में मस्तिष्क रीढ़ की हड्डी कपाल की नसें परिधीय तंत्रिकाएं तंत्रिका जड़ें स्वायत्त त्रिका तंत्र न्यूरोमस्कुलर जोड़ और मांसपेशियां । इन विकारों में मिर्गी

अल्जाइमर रोग और अन्य मनोभ्रंश स्ट्रोक, माइग्रेन और अन्य सिरदर्द विकारों सहित मस्तिष्कवाहिकीय रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस पार्किंसंस रोग, न्यूरोइन्फेकन्स ब्रेन ट्यूमर तंत्रिका संबंधी आघात संबंधी विकार शामिल हैं ।


सिर के आघात के कारण प्रणाली और कुपोषण के परिणामस्वरूप तंत्रिका संबंधी विकार । कई जीवाणु ( अर्थात माइकोबैक्टीरियल ट्यूबरकुलोसिस निसेरिया मेनिंगिएड्स ) वायरल ( यानी ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस ( एचआईवी ) एंटरोवायरस, वेस्ट नाइल वायरस, जीका ), फंगल ( यानी क्रिप्टोकोकस, एस्परगिलस ), और पैरासीक ( यानी मलेरिया, चगास ) संक्रमण तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। न्यूरोलॉजिकल लक्षण हो सकते हैं।

ऐसी अन्य स्थितियां हैं जिन्हें क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडिशन के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है । कुछ और उदाहरण हो सकते हैं :

1. अल्जाइमर रोग

2. पार्किंसंस रोग

3. डायस्टोनिया

4. न्यूरोमस्कुलर रोग

5 .मल्टीपल स्केलेरोसिस

6. मिर्गी

7. स्ट्रोक


1. अल्जाइमर रोग और अन्य मनोभ्रंश :- यह बौद्धिक कार्य और अन्य संज्ञानात्मक कौशल का एक बिगड़ना है जो सामाजिक या व्यावसायिक कामकाज में हस्तक्षेप करने के लिए पर्याप्त गंभीरता है। मनोभ्रंश का कारण बनने वाली कई बीमारियों में यह दुनिया भर में 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में सबसे आम कारण है, इसके बाद संवहनी मनोभ्रंश मिश्रित मनोभ्रंश शामिल हैं और सामान्य चिकित्सा शर्तों के कारण मनोभ्रंश ।


 यद्यपि मनोभ्रंश के अन्य कारणों को अलग करना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से विकासशील देशों में भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यह परिवारों में देखभाल के बोझ को कम कर सकता है । अल्जाइमर रोग के शुरुआती चरणों में स्मृति हानि हल्की होती है, लेकिन इसके अंतिम चरण में व्यक्ति दैनिक कार्यों को पूरा करने बातचीत करने और अपने पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रिया करने की क्षमता खो देते हैं । 

अल्जाइमर रोग संयुक्त राज्य अमेरिका में मृत्यु का छठा प्रमुख कारण है । अल्जाइमर रोग से पीड़ित लोग औसतन आठ साल जीते हैं, जब तक कि उनके लक्षण अचूक हो जाते हैं । हालांकि, उम्र और अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के आधार पर जीवित रहने की अवधि चार से 20 वर्ष तक हो सकती है ।


पार्किंसस रोग-पार्किंसन डिजीज एक तंत्रिका तंत्र से जुड़ा रोग है जिसमें शरीर के अंगों में कंपन महसूस होता है। दुनिया में करीब

एक करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। भारत में हर साल कई मामले सामने आते यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है। हालांकि पार्किंसन रोग 60 पार लोगों में अधिक देखने को मिलता है।


ऐसे पहचानें रोग- कुछ खास लक्षण इस रोग की ओर इशारा करते हैं जैसे शरीर में कंपन्न होना, जकड़ना, शारीरिक क्रियाओं को तेजी से न कर पाना, झुककर चलना, अचानक गिर पड़ना, याद्दाश्त कमजोर होना और व्यवहार में बदलाव इसके लक्षण हैं। अबतक इस रोग का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है ब्रेन के एक खास हिस्से में न्यूरॉन की कमी होने के कारण डोपामिन नामक रसायन का स्तर कम हो जाता है। ऐसे में दूसरे जरूरी रसायन के साथ इसका तालमेल बिगड़ता है और ये स्थिति बनती है।


मिर्गी :- मिर्गी को डॉक्टरी भाषा में एपिलेप्सी के नाम से पहचाना जाता है। मिर्गी से पीड़ित लोगों के साथ उनके परिवार को भी मिर्गी के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 17 नवंबर को नेशनल एपिलेप्सी डे मनाया जाता है। आमतौर पर लोगों को लगता है कि मिर्गी सिर्फ एक ही तरह की होती है। लेकिन आपको बता दें कि मिर्गी को एक नहीं बल्कि मोटे तौर पर 4 तरह से बांटा जा सकता है। आइए जानते हैं आखिर क्या होती है मिर्गी, इसके प्रकार, लक्षण और बचाव के तरीके। मिर्गी एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें मरीज के दिमाग में असामान्य तरंगें पैदा होने लगती हैं। मस्तिष्क में गड़बड़ी होने के कारण व्यक्ति को बार-बार दौरे पड़ने लगते हैं। जिसकी वजह से व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है।


इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है।अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं।


क्या है मिर्गी - मिर्गी एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें मरीज के दिमाग में असामान्य तरंगें पैदा होने लगती हैं। मस्तिष्क में गड़बड़ी होने के कारण व्यक्ति को बार-बार दौरे पड़ने लगते हैं। जिसकी वजह से व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं।

मिर्गी के प्रकार – Types of Epilepsy दौरों के आधार पर मिर्गी के तीन प्रकार हैं, जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि मस्तिष्क के किस हिस्से पर मिर्गी की गतिविधि शुरू हुई -


1. आंशिक दौरा ( Partial Seizure ) – एक आंशिक दौरे का अर्थ है कि रोगी के मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में मिर्गी की गतिविधि हुई थी । आंशिक दौरे के दो प्रकार होते हैं -

> सरल आंशिक दौरा इस दौरे की अवधि में रोगी जागरूक रहते हैं। ज्यादातर मामलों में रोगी अपने परिवेश से भी अवगत रहते हैं, भले ही दौरा बढ़ रहा हो ।

> जटिल आंशिक दौरा इसमें रोगी की चेतना खत्म हो जाती है । मरीज को आमतौर पर दौरे के बारे में याद नहीं रहता I


2. सामान्यीकृत दौरा ( Generalised Seizure ) - एक सामान्यीकृत दौरा तब आता है जब मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में मिर्गी संबंधी गतिविधि होती है । जब दौरा बढ़ जाता है तो मरीज की चेतना खत्म हो जाती है ।

> टॉनिक क्लोनिक दौरे — ये सामान्यीकृत दौरे के शायद सबसे प्रसिद्ध प्रकार हैं । ये चेतना के लुप्त होने, शरीर के अकड़ने और कांपने का कारण बनते हैं ।

> एब्सेंस दौरे —इसमें चेतना थोड़े समय के लिए लुप्त हो जाती है और ऐसा लगता है जैसे व्यक्ति अंतरिक्ष को घूर रहा हो ।

> टॉनिक दौरे — मांसपेशियाँ कठोर हो जाती हैं। इस दौरे में व्यक्ति नीचे गिर सकता है ।

> एटोनिक दौरे —मांसपेशियों पर नियंत्रण में कमी, जिसके कारण व्यक्ति अचानक गिर सकता है ।

> क्लोनिक दौरे—ये दौरे नियत अंतराल के बाद लगने वाले झटकों के साथ संबद्ध हैं ।


3. माध्यमिक सामान्यीकृत दौरे (Secondary generalised seizure )— एक माध्यमिक सामान्यीकृत दौरा तब पड़ता है, जब मिर्गी संबंधी गतिविधि आंशिक दौरे के रूप में शुरू होती है, लेकिन फिर मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में फैल जाती है। जब दौरा बढ़ जाता है तो मरीज अपनी चेतना खो देता है ।


Epilepsy मिर्गी के लक्षण - मिर्गी के मुख्य लक्षण दौरे पड़ना है । अलग अलग व्यक्तियों में इसके लक्षण दौरों के प्रकार के अनुसार भिन्न होते हैं


1 फोकल ( आंशिक ) दौरे —एक साधारण आंशिक दौरे में चेतना को कोई खास नुकसान नहीं होता । इसके लक्षणों में निम्न शामिल है। - स्वाद गंध दृष्टि, श्रवण या स्पर्श इन्द्रियों बदलाव आना । अंगों में झनझनाहट महसूस होना इत्यादि ।

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2 जटिल आंशिक दौरे— इसमें जागरूकता या चेतना की क्षति शामिल है । अन्य लक्षणों में निम्न शामिल है . एकतरफ नजर टिकाये रखना कोई प्रतिक्रिया न करना एक ही गतिविधि को बार बार दोहराना इत्यादि ।

3 एटोनिक दौरे — में मांसपेशियों पर नियंत्रण कम होता जाता है और व्यक्ति अचानक गिर सकता है ।

4 क्लोनिक दौरों की पहचान चेहरे, गर्दन और बांह की मांसपेशियों में लगने वाले पुनरावृत्त झटकों से होती है ।

5 मायोक्लोनिक दौरे के कारण हाथों और पैरों में स्वाभाविक रूप से तेज झनझनाहट होती है ।

6 टॉनिक - क्लोनिक दौरों को ग्रैंड मल दौरे कहा जाता था । इसके लक्षणों में शरीर में अकड़न, कम्पन या मल आने पर नियंत्रण कम होना, जीभ को काटना, चेतना का लोप होना शामिल हैं। दौरे के बाद आपको उसके बारे में याद नहीं रहता है या आप कुछ घंटों के लिए थोड़ा बीमार महसूस कर सकते हैं ।

तंत्रिका पेशीय रोग :- न्यूरोमस्कुलर रोग एक व्यापक शब्द है जिसमें कई बीमारियां और भी शामिल हैं जो मांसपेशियों के कार्य को बाधित करती हैं । ये सीधे या परोक्ष रूप से नसों या न्यूरोमस्कुलर जंकऑन ( मोटर नसों और मांसपेशी फाइबर का मिलन बिंदु ) को शामिल करके पेशी को सीधे या परोक्ष रूप से शामिल कर सकते हैं। न्यूरोमस्कुलर रोगों के लक्षणों में शामिल हो सकते हैं स्तब्ध हो जाना, दर्दनाक असामान्य संवेदना मांसपेशियों में कमजोरी, मांसपेशियों में शोष मांसपेशियों में दर्द या मरोड़ ( फासिकुलाऑन ) । न्यूरोमस्कुलर रोगों को निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

पूर्वकाल हॉर्न कोशिकाओं के रोग ( रीढ़ की हड्डी और मोटर तंत्रिका के बीच जंक्शन )

— मोटर न्यूरॉन रोग मोटर और संवेदी तंत्रिकाओं से जुड़े रोग

— परिधीय न्यूरोपैथी न्यूरोमस्कुलर फंक्शन के विकार

— मायस्थेनिया ग्रेविस और संबंधित रोग मांसपेशियों के रोग ( मायोपैथीज )

— मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और भड़काऊ मायोपैथीज


Blood disorders रक्त विकार


थेलेसीमिया Thalassemia :- बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।


थैलासीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। किन्तु पालकों में से एक ही में माइनर थेलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के २५ प्रतिशत संभावना है। अतः यह अत्यावश्यक है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जाँच करा लें। 

विश्व स्वास्थ्य लीसीमिय संगठन के अनुसार भारत देश में हर वर्ष सात से दस हजार थैलीसीमिया पीडित बच्चों का जन्म होता है। केवल दिल्ली व राष्ट्रीय

राजधानी क्षेत्र में ही यह संख्या करीब १५०० है । भारत की कुल जनसंख्या का ३.४ प्रतिशत भाग थैलेसीमिया ग्रस्त है। इंग्लैंड में केवल ३६० बच्चे इस रोग के शिकार हैं, जबकि पाकिस्तान में लाख और भारत में करीब 10 लाख बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं।

इस रोग का फिलहाल कोई ईलाज नहीं है। हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन थैलीसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है। जिसके कारण लाल

रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होती है। रक्त की भारी कमी होने के कारण रोगी के शरीर में बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। रक्त की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार-बार रक्त चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्वजमा होने लगता है, जो हृदय, यकृत और फेफड़ों में पहुँचकर प्राणघातक होता है। मुख्यतः यह रोग दो वर्गों में बांटा गया है:


मेजर थैलेसेमियाः यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।


माइनर थैलेसेमियाः थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।


हीमोफीलिया heemopheeliya - पैतृक रक्तस्राव या हीमोफिलिया (म्मउवचीपसर्प) एक आनुवांशिक ( hereditary) विकार है जो आमतौर पर पुरुषों को होती है और औरतों द्वारा फैलती होती है। 


हीमोफीलिया आनुवंशिक रोग है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त

प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है।


इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या भारत में कम है। इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है। इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। पीड़ित रोगियों से पूछताछ करने पर बहुधा पता चलता है कि इस प्रकार की बीमारी घर के अन्य पुरुषों को भी होती है। इस प्रकार यह बीमारी पीढ़ियों तक चलती रहती है। 

यह बीमारी रक्त में थाम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin ) नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।

लक्षण :- इस बीमारी के लक्षण हैं शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आँख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों (रवपदजे) की सूजन इत्यादि । जाँच करने पर पता चला कि इस रोग में खून के थक्का होने का समय (clotting time ) बढ़ जाता है

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