Mental Illness, Multiple Disabilities मानसिक रुग्णता या मानसिक विकार

 Unit-3.4
Mental Illness, Multiple Disabilities-


Mental illness ( मानसिक रुग्णता) - मानसिक रुग्णता या मानसिक विकार एक ऐसी अवस्था है जो व्यक्ति की सोच, एहसास या व्यवहार के साथ-साथ उसकी दैनिक क्रियाओं को प्रभावित करता है। जो सामाजिक एकीकरण को समस्या जनक बना देता है। अथवा व्यक्तिगत समस्या उत्पन्न करता है। अन्य रोगों एवं विकृतियों की तरह मानसिक रुग्णता एक मस्तिष्कीय विकार है । इसलिए इसे मानसिक या मस्तिष्कीय विकार कहते हैं। बहुत से वैज्ञानिकों का मानना  कि मानसिक रुग्णता सिर्फ मस्तिष्क एवं उसकी क्रियाओं तक सीमित नहीं होती बल्कि इसमें शरीर के सभी दृष्टिकोण सम्मिलित होते हैं, जैसे :- संपूर्ण शारीरिक तंत्र एवं शरीर के अंदर होने वाली रासायनिक प्रक्रियाएं आदि । 


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बहुत से देशों लगभग हर तीसरा व्यक्ति किसी ना किसी प्रकार की समस्या प्रकट करता है। मानसिक रुग्णता किसी भी उम्र, जाति, धर्म अथवा कमजोर विकास के कारण नहीं होती है। मानसिक रुग्णता का उपचार किया जा सकता है। मानसिक रुग्णता का सबसे अच्छा पक्ष हैं कि इससे ग्रसित व्यक्ति मे सुधार संभव होता है। बहुत से गंभीर इससे मानसिक रुग्ण व्यक्तियों को उपचार के द्वारा ठीक किया जा सकता है।


परिभाषा :-

मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियों की पहचान एवं समझ में निश्चित ही समय के साथ बदलाव हुआ है तथा परिभाषा, आकलन एवं वर्गीकरण में भिन्नता देखी गई है। ऐसे में मानसिक रुग्णता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया गया है,

मानसिक रुग्णता को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है "यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार के तीनों

पक्षों – सांवेगिक संज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक में विसंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।"

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निट्जेल (1998) के अनुसार :- मानसिक रुग्णता का तात्पर्य व्यक्ति के व्यवहारात्मक या मनोवैज्ञानिक कार्यों में पाए जाने वाले विक्षोभ से होता है जो व्यक्ति के सामाजिक - सांस्कृतिक पहलू से मेल नहीं खाता तथा जिसके कारण व्यक्ति में तनाव, व्यवहारात्मक अक्षमता तथा सर्वांगीण क्रियाओं में असंतुलन उत्पन्न होता है।"


मानसिक रुग्णता के प्रकार :- मानसिक रुग्णता प्रकृति एवं गंभीरता के आधार पर कई प्रकार की होती है। प्रायः चिंता एवं उदासी विकृति सबसे साधारण मानसिक रुग्णता मानी जाती है। जब लोग गंभीर रूप से तनाव, चिंता अथवा दुख महसूस करते हैं, तो मानसिक रुग्णता मानी जा सकती है, कभी-कभी गंभीर रूप से चिंता ग्रस्त लोग घर में पड़े रहते हैं और उन्हें घर से बाहर जाने में डर लगता है, ऐसी कई स्थितियां हैं जिनकी पहचान मानसिक रुग्णता के रूप में की जाती है। इस तरह मानसिक रुग्णता कई प्रकार की होती है।


1. चिंता विकार (Anxiety Disorders ) :- चिंता विकृति से ग्रसित लोग कुछ वस्तुओं अथवा स्थितियों के प्रति डर एवं आशंका की प्रतिक्रिया करते हैं, साथ ही चिंता अथवा घबराहट के लक्षण प्रदर्शित करते हैं, जैसे:- तेज हृदय गति एवं पसीने छूटना इत्यादि । यदि व्यक्ति की प्रतिक्रिया स्थिति के अनुरूप नहीं होती है, व्यक्ति प्रतिक्रिया पर नियंत्रण नहीं कर पाता अथवा जब चिंता सामान्य क्रियाओं में बाधा डालती है, तो व्यक्ति चिंता विकार से ग्रसित माना जाता है।

2. मनोदशा विकार (Mood Disorders) -- इसे प्रभावी विकृति के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत दुख का एहसास बने रहना, या कुछ समय के लिए बहुत अधिक प्रसन्नता महसूस करना अथवा अत्यंत खुशी से बहुत दुख की स्थिति महसूस करना इत्यादि विकृतियां देखी जा सकती हैं। इसमें से अधिक मनोदशा विकार, उन्माद, तनाव एवं द्विध्रुवीय विकार के नाम से जानी जाती है।


3. मनोविक्षिप्तता विकार ( Psychotic Disorders) :- इसके अंतर्गत विक्षिप्त सोच एवं जागरूकता सम्मिलित होती है। मनोविक्षिप्तता के दो सबसे चर्चित विकार हैं मतिभ्रम एवं भ्रम । मतिभ्रम के अंतर्गत व्यक्ति ऐसे चित्रों एवं ध्वनियों का अनुभव करता है जो वास्तव में नहीं होता है। इसी प्रकार भ्रम के अंतर्गत व्यक्ति गलत चीजों को प्रमाण के बावजूद भी सही मानते हैं।


4. खाने में विकार (Eating Disorders) :- खाने के विकार के अंतर्गत अत्यधिक भावात्मकता अभिवृत्ति, स्नायुविक एवं रंगरली खाना विकार को खाने की साधारण विकारों के अंतर्गत जाना जाता है।


5- आवेग नियंत्रण एवं व्यसन विकार ( Impulse Control as Addition Disorders)

को उकसाने या आगे का विरोध करने में मुश्किल होता है, जिससे वह स्वयं या दूसरों चोरी करना तथा जुआ खेलने की विवशता इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं । मदिरा आवेग नियंत्रण विकार से ग्रसित व्यक्ति

लिए खतरनाक कार्य को नहीं कर पाता है । व्यसन के साधारण साधन है। प्रायः इन विकारों से ग्रसित लोग इन चीजों में सम्मिलित होकर इतने आदती हो जाते हैं कि अपने संबंधों एवं जिम्मेदारियों को नकारने लगते हैं।


6. व्यक्तित्व विकार (Personality Disorders ) :- व्यक्तित्व विकार

ग्रसित लोगों का व्यक्तित्व अत्यंत जटिल व्यक्तित्व के गुणो वाला होता है, जो व्यक्ति को कष्ट देता है। तथा कार्य, विद्यालय अथवा सामाजिक संबंधों में समस्या पैदा करता है। इसके साथ साथ वे इतनी जिद्दी होते हैं कि सामान्य कार्यकलाप में भी बाधा डालते हैं। इसके उदाहरण हैं- समाज विरोधी व्यक्तित्व विकार, सम्मोह बाध्य करण व्यक्तित्व विकार इत्यादि ।


7. समायोजन विकार (Adjustment Disorders) — जब कोई व्यक्ति तनावपूर्ण स्थिति में भावात्मक या व्यवहारात्मक लक्षण प्रदर्शित करता है, तो समायोजन विकार उत्पन्न होता है। यह तनाव विभिन्न स्थितियों में हो सकते हैं। जैसे :- प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना,

आदि ।


8. संबंध विच्छेद विकार (Dissociative Disorders) :- इस विकार से ग्रसित लोग अनेकों गंभीर परेशानियों अथवा स्मरण में परिवर्तन, चेतना, पहचान तथा स्वयं के आसपास की जानकारी से संबंधित समस्याओं से परेशान रहते हैं। यह विकार प्रायः अत्यधिक तनाव से जुड़े होते हैं, जो सदमे के आघात, दुर्घटना या व्यक्ति द्वारा देखी गई किसी त्रासदी के परिणाम स्वरूप हो सकते हैं।


9. टिक विकार :- इस प्रकार से ग्रसित व्यक्ति बराबर लगातार या अचानक अनियंत्रित आवाज करता अथवा शरीर की गति करता है। इस प्रकार की गई आवाज को वाक टिक कहते हैं। जैसे कुछ मानसिक मंद बच्चों में देखा जा सकता है। टोरेट सिंड्रोम टिक विकार का एक उदाहरण है।

मानसिक रुग्णता के प्रकार के अंतर्गत वर्णित किए गए यह सभी विकार मानसिक रुग्णता के साथ-साथ मानसिक मंद व्यक्तियों में भी पाए जा सकते हैं। इससे ग्रसित व्यक्तियों के विकास के लिए इन समस्याओं का निदान प्राथमिकता से किया जाना आवश्यक होता है।


Multiple Disability ( बहु विकलांगता ) - बहु विकलांगता का तात्पर्य दो या दो से अधिक विकलांगता का होना है। बहुविकलांगता ना तो संक्रामक है और ना ही आनुवांशिक है । जिस प्रकार अन्य विकलांगताएं जन्मजात जन्म के समय अथवा जन्म केबाद होती हैं। उसी प्रकार बहु विकलांगता भी होती है। कभी-कभी मानसिक मंद बच्चे 15 से 20 वर्ष की अवधि में अल्प दृष्टि बाधित हो जाते हैं। इस स्थिति में उन्हें मानसिक विकलांग ना कह कर विकलांग की संज्ञा दी जाती है।

जब किसी व्यक्ति में दो या दो से अधिक प्रकार की विकलांगता एक साथ पाई जाती है तो इस स्थिति को बहु विकलांगता कहते हैं।

परिभाषा :-

फेडरल परिभाषा (विकलांग जन शिक्षा अधिनियम 1990 ) :- “कुछ ऐसी क्षतियां (जैसे मानसिक मंदता - चक्षुहीनता मानसिक मंदता आर्थोपेडिक क्षति इत्यादि ) को विकलांगता मैं सम्मिलित किया गया था, लेकिन शैक्षिक स्तर में तीव्र समस्या, बहरे चक्षुहीन को बहु विकलांगता मे सम्मिलित नहीं किया गया था।”

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बहु - विकलांगता के प्रकार :- एक से अधिक विकलांगता से ग्रसित व्यक्ति को ही बहू विकलांग कहते हैं। यह प्रायः निम्नलिखित

प्रकार की हो सकती है।


1. श्रवण अक्षम एवं दृष्टिबाधित :- जब व्यक्ति बाहे वातावरण की ध्वनि को सुनने में अक्षम होने के साथ-साथ किसी वस्तु इत्यादि को सामान्य दूरी पर स्पष्ट रूप से देखने में अक्षम होता है तो उसे श्रवण एवं दृष्टिबाधित बहु-विकलांग कहते हैं।

2. दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षम तथा मानसिक मंदता :- जब किसी व्यक्ति में सोचने, समझने, सीखने, निर्णय लेने आदि में देरी अथवा अक्षमता हो, बाह्य वातावरण की ध्वनि को सुनने में अक्षम हो एवं सामान्य दूरी पर किसी वस्तु को स्पष्ट देखने में कठिनाई हो रही हो तो उसे दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित, मानसिक मंदता से ग्रसित बहु विकलांगता कहते


3. दृष्टिबाधित एवं मानसिक मंदता :- सीखने में कमी, सीखने में अक्षम एवं सामान्य परिवेश में वस्तु को स्पष्ट देखने में कठिनाई हो तो उसे दृष्टिबाधिता एवं मानसिक मंदता कहते हैं।

4. प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात एवं मानसिक मंदता :- मस्तिष्कीय

के साथ-साथ उसके अंग लकवा ग्रस्त हो, मांसपेशियां असामान्य हो तथा सोचने समझने, सीखने एवं निर्णय लेने में अक्षम अथवा कठिनाई हो तो उसे प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात एवं मानसिक मंदता से ग्रसित बहु विकलांगता कहते हैं।

5. दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षम एवं गामक अक्षमता (श्रव्य एवं दृश्य समस्या के साथ जब किसी व्यक्ति को चोट अथवा दुर्घटना के कारण शारीरिक विकलांगता हो जाती है तो उसे दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षम एवं गामक अक्षमता से ग्रसित बहु विकलांगता कहते हैं।


इसी प्रकार मानसिक मंदता के साथ यदि उसे शारीरिक समस्या होती है जिसके कारण वह चलने फिरने में असमर्थ हो जाता है तो उसे मानसिक एवं शारीरिक विकलांग कहते है ।


बहु विकलांगता के लक्षण - बहु विकलांगता दो या दो से अधिक विकलांगता का मिलाजुला रूप होता है। विभिन्न प्रकार की विकलांगता से जुड़े बहु विकलांगता के लक्षण निम्नलिखित हैं।

1. बहु विकलांगता में बच्चों की शारीरिक विकास की प्रक्रिया धीमी होती है। जैसे :- गर्दन नियंत्रण, बैठना, घुटने के बल चलना, खड़ा होना इत्यादि ।

2. शौच नियंत्रण का अभाव होता है।

3. कुछ बच्चों को निकलने, चबाने, हाथ के उपयोग इत्यादि कौशल में अक्षमता होती है।

4. वे आसानी से देखने, सुनने, स्पर्श, गंध, स्वाद को नहीं समझते हैं।

5. स्पष्ट रूप से अपनी भावनाओं, विचारों, आवश्यकताओं को व्यक्त नहीं कर सकते हैं।

6. कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो किसी घटना को बहुत ही अल्प समय तक याद रखते हैं।

7. उनमें भावात्मक लगाव का अभाव होता है।

8. इनमें देखने, सीखने एवं पढ़ने लिखने की समस्या होती है।

9. किसी छोटे से छोटे कार्य को सीखने के लिए परिमार्जित तरीके का सहारा लेना पड़ता है।

10. उन्हें सीखने एवं जीने के लिए अधिक से अधिक मदद की जरूरत होती है।



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