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 अध्याय 3


व्यवसाय



वस्त्र सिलाई


वस्त्र सामग्री का इतिहास


● प्रारंभ में लोग वृक्षों की छाल, बड़ी-बड़ी पत्तियाँ अथवा जंतुओं की चर्म और समूर से अपने शरीर को डकते थे।

● कालतिर में भारतवासी रूई से बने वस्त्र पहनते थे, जो गंगा के निकटवर्ती क्षेत्र में उगाई जाती थी।

● फ्लैक्स भी एक पादप है जिससे प्राकृतिक तंतु प्राप्त होते है जो प्राचीन मिस्र में नील नदी के किनारे पर उगाया जाता था।

● सिलाई की सुई के आविष्कार के साथ लोगों ने वस्वों की सिलाई करके कपड़े पहनने आरंभ किए। इस आविष्कार के बाद आज भी साड़ियों, धोतियों, लुंगियों तथा पड़ियों को बिना सिले वस्त्रों के रूप में उपयोग किया जाता है।


कपास गोलक ओटना→ रेशे कताई→ तागे बुनाई→   वस्त्र


सिलाई मशीन


मशीनी युग में सिलाई मशीन का आविष्कार सर्वप्रथम फ्रांस के एक दर्जी द्वारा 1830 में साधारण मशीन बनाकर किया गया।


सन् 1881 में सिंगर नामक व्यक्ति ने एक अच्छी किस्म की मशीन का आविष्कार किया तथा इस आविष्कार ने सिलाई की दुनिया में क्रांति ला दी।


भारत में सर्वप्रथम सन् 1935 ई. में ऊषा मशीन का कारखाना स्थापित किया गया।


वस्त्र सिलाई


वस्त्र, तागी (या धागों) से मिलकर बनते है तथा तागे तंतुओं से मिलकर बने होते है। तंतु दो प्रकार के होते हैं-


1. प्राकृतिक तंतु कुछ वस्त्रों जैसे सूती, जूट, रेशमी ऊनी के तंतु पादपों तथा जंतुओं से प्राप्त होते है। इन्हें प्राकृतिक तंतु कहते है। पादप तंतु रूई तथा जूट (पटसन)


जंतु तंतु ऊन (भेड़, बकरी, खरगोश, याक, ऊँट), रेशम (रेशम कीट कोकुन से)


2. संश्लिष्ट तंतु - वे तंतु जिन्हें प्रयोगशाला में रासायनिक पदार्थों से बनाया जाता है, संश्लिष्ट तंतु कहा जाता है। पॉलिस्टर, नायलॉन, रेयॉन, टेरीलिन और एक्रिलिक, संश्लिष्ट तंतुओं के कुछ उदाहरण है।


रूई- रूई कपास पादप से प्राप्त की जाती है। कपास से बीजों को फंकतन द्वारा पृथक् किया जाता है। इस प्रक्रिया को कपास ओरना कहते है।


जूट (पटसन)- पटसन तंतु को पटसन पादप के तने से प्राप्त किया जाता है। भारत में इसकी खेती वर्षा ऋतु में किया जाता है। भारत में पटसन पश्चिम बंगाल, बिहार तथा असम में उगाया जाता है। सामान्यतः पटसन पादप को पुष्पन अवस्था में काटते है।


सूती तागे की कताई


रेशों से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते है। कताई के लिए एक सरल युक्ति हस्त तकुआ का उपयोग किया जाता है जिसे तकली कहते है। खादी के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने 1956 में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग का गठन किया।


तागों के दो सेटों को आपस में व्यवस्थित करके वस्व बनाने की प्रक्रिया को बुनाई कहते है। वस्त्रों की बुनाई करों पर की जाती है।


पश्मीना शीले


कश्मीरी बकरी की त्वचा के निकट मुलायम बाल (फर) होते हैं, इससे बेहतरीन शॉले बनाई जाती है, जिन्हें पश्मीना शॉले कहते है।


भेड़ों की कुछ भारतीय नस्ले व ऊन



रेशों को ऊन में परिवर्तित करने के प्रक्रम को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है- ऊन की कटाई अभिमार्जन छँटाई बर की सैंटाई रंगाई वीलिंग


रेशम

रेशम (सिल्क) के रेशे भी जोतव रेशे होते है। रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम के कीटों को पालना रेशम कीट पालन (सेरीकल्यर) कहलाता है। मादा रेशम कीट अंडे देती है जिनसे लार्वा निकलते है, जो कैटरपिलर, इल्ली या कीट कहलाते है। टसर रेशम, मूगा रेशम व कोसा रेशम विभिन्न किस्म के रेशम कीटों द्वारा काते गए कोकुनों से प्राप्त किए जाते है। सबसे सामान्य रेशम कीट शहतूत रेशम कीट है। रेशम फाइबर प्रोटीन से बने होते है। रेशम उद्योग चीन से आरंभ हुआ। रेशम उत्पादन में चीन विश्व में प्रथम स्थान पर है।


सही व उत्तम सिलाई के आवश्यक चरण


वस्त्रों की उत्तम सिलाई करने हेतु निम्न महत्वपूर्ण चरणो की जानकारी करना आवश्यक है-


1. कपड़ा तैयार करना


सिलाई करते समय सर्वप्रथम वस्त्र को तैयार करना अनिवार्य है, जिससे सिलने से पूर्व जितना वस्त्र को सिकुड़ना है, सिकुडन जाऐगा।


2. नाप लेना


वस्त्र दिखने में सुंदर एवं आकर्षक हो इसके लिए सही माप लेना आवश्यक है। सही माप लेते समय निम्न बिन्दुओं का ध्यान


रखना चाहिए-


- नाप लेते समय इंच टेप का प्रयोग करना बाहिए। साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए कि इंच टेप उलट न जाये।


नाप इस प्रकार लेना चाहिए कि व्यक्ति को बार-बार न घुमना पड़े।


- नाप लेते समय व्यक्ति सीधा खडा हो।


लम्बाई, चौड़ाई, तीरा, बाँहों की लम्बाई, मोहरी की चौडाई, गले की गहराई सबका आवश्यक नाप लेना चाहिए।


3. ड्राफ्टिंग एवं पेपर पेटर्न तैयार करना


उत्तम एवं आकर्षक सिलाई हेतु अखबार अथवा ब्राउन पेपर पर ड्राफ्टिंग करना अनिवार्य है।


4. ले आउट एवं कटिंग करना


कपडे की कटिंग करने के लिए टेबिल समतल स्थान पर रखकर तैयार किये गए पेपर के पैटर्न के सभी हिस्सों को ताने की दिशा में रखकर चौंक के द्वारा निशान लगाने की क्रिया ले-आउट कहा जाता है। ऐसा करने से कपडे की बचत होती है तथा कपड़े की कटिंग आसान होती है।


5. सिलाई


कटिंग सही प्रकार से हो जाने पर वस्त्र के प्रत्येक भाग को हाथ अथवा मशीन से सिल देना चाहिए। सिलाई करते समय इस्त्री साथ ही साथ करने पर जोडो वाले स्थान पर सिलवटे नहीं आती है एवं सुंदर पोशाक तैयार होती है।


इस्त्री तीन प्रकार की होती है-


साधारण


- स्वचालित


- वाष्पयुक्त कोयले से गर्म होने वाली बिजली से गर्म होने वाली।


- स्वचालित प्रेस सिलाई हेतु उत्तम मानी जाती है, क्योंकि कपड़े की प्रकृति जैसे ऊनी, रेशमी के अनुसार ताप नियत्रित किया जा सके।


सिलाई के काम में आने वाले उपकरण व उनकी उपयोगिता


इची टेप ये लचीले व मुलायम होते है तथा शारीरिक बनावट के अनुसार मुड़ने की क्षमता रखते है। इसके एक ओर 1 इंच से 60 इथ और दूसरी ओर से 162 सेमी तक के निशान अंकित रहते है।


टेलर्स चॉक चिकनी मिट्टी से बनी चौकोर नुकीली ब‌ट्टी को चौक या खड़िया कहते है। यह कई रंगो से मिलती है। यह कपडों पर डियाइन या कटाई से पहले निशान लगाने के काम आती है।


ट्रेसिंग कील यह लकड़ी की गोल लम्बी छड के आगे दाँतो वाले पहियेनुमा बना एक यंत्र है, जिसे 'ट्रेंसिग व्हील' कहा जाता है। यह कपडे के एक ओर से दूसरी ओर निशान लगाने के काम आता है।


अगुश्तान हाथ से सिलाई करते समय सुई अंगुली में न चुभे इसके लिये दाये हाथ की बड़ी अंगुली में अंगुस्तान पहना जाता है। इससे सुई अँगुली में चुभती नहीं और न त्वचा खुरदरी होती है।


बॉबिन और बॉबिन केस धागा लपेटने वाली फिरकी को "बॉबिन और जिस डब्बी में यह रखा जाता है, उसे बॉबिन केस कहते है।


बॉबिन वाइन्डर यह फ्लाई व्हील के सहारे लगा एक छड जैसा पिन है जिसके सहारे बॉबिन अर्थात् फिरकी में धागा भरा जाता है। स्पूल पिन यह दो लम्बी पिनो के समान होती है। यह मशीन के ऊपरी भाग में फिट रहती है। सिलाई के समय धागे की रील इसी पर लगाई जाती है।


ब्रेड टेशन डिवाइस यह धागे के तनाव को नियोजित करने वाला भाग है। इसमे एक स्प्रिंग में दो गोल पतियों के बीच सामने की ओर एक पेंच लगा रहता है। जिसे कसने तथा बीला करने पर धागे का तनाव कम या अधिक किया जाता है, इसलिए इसे थ्रेड टेंश डिवाइस कहते है।


टाँका नियामक :- यह मशीन के पीछे पर सामने की ओर एक लम्बा खाँचा होता जिस पर 0 से 5 अंक अंकित रहते हैं।


विकिंग शिअर्स :- 6-9 इंच की लम्बाई वाली दांतेदार किनारे वाली कैची होती है। यह वस्त्रों के किनारो को परिसज्जित करने के काम आती है।


सिलाई मशीन का तेल :- मशीन के सभी पुर्जा तथा जोड़ो को गतिशील बनाने के लिए स्नेहक के रुप में तेल लगाना चाहिए।


बागवानी व सब्जीवाला



बागवानी को हॉर्टीकल्चर भी कहा जाता है। यह कृषि विज्ञान की एक शाखा है जिसमें सब्जियों, फूलों, फलों, मसालों और सुगंधित पौधों का अध्ययन किया जाता है।


बागवानी का क्षेत्र- बागवानी की प्रमुख शाखाएँ निम्न है-


1. सब्जी विज्ञान (ओलेरी कल्चर)


2. फल विज्ञान (पॉमोलॉजी)


3. पुष्प विज्ञान (फ्लोरीकल्चर)


4. अलंकृत बागवानी


सब्जियाँ-


1. जड़ों से प्राप्त गाजर, मूली, शलजम, शकरकन्द


2. स्तम्भ से प्राप्त- आलू, अरवी


3.पर्ण से प्राप्त पालक, मैथी, बथुआ


4. पुष्पक्रम से प्राप्त- फूल गोभी


5. फल से प्रास-टमाटर, बैंगन, भिण्डी, ग्वारफली


फल-


• पुष्प के अण्डाशय के निषेचन से बनी संरचना फल कहलाती है, कुछ फल इस प्रकार है-


1. आम — मैजीफेरा इण्डिका


संतरा — सिंटस रेटिकुलेटा


औषधीय पादप-


1. स्तम्भ से प्राप्त-


हल्दी — कुरकुमा लौंगा


2.


केला — म्यूज़ा पेराडिसियोका


4.


पपीता — केरिका पपाया


अदरक — जिन्जिबार आफिसेल


लहसुन — एलियम सेटाइम


गूगल — कोमिफोरा वाइटाई


2. मूल से प्राप्त-


सर्पगंधा — रावल्फिया सर्पेन्टाइना


अश्वगंधा — विधान सोम्निफेरा


3. छाल से प्रात-


कुनैन — सिनकोना आफिसिनेलिस


अर्जुन — टर्मिनेलिया अर्जुन


4. पर्ण से प्राप्त-


ग्वारपाठा — एलॉयवेरा


तुलसी — ओसिनम सेक्टम


ब्रह्मी - सेन्टेला एशियारिका


5. फल से प्राप्त-


पेय पदार्थ-


अफीम — पेपेवर सोमिफेरम


आँवला — एम्बलिका ऑफिसिनेलिस


चाय — कामेलिया साइनेन्सिस से तथा काफी-काफिया अरेविका पौधे के भुने हुए बीजों से तैयार की जाती है।

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