अध्याय 2
वस्त्र एवं आवास
विभिन्न ऋतुओं में पहने जाने वाले वस्त्र
1. ग्रीष्म ऋतु / गर्म जलवायु : ग्रीष्म ऋतु में हल्के (सफेद) एवं सूती वस्त्र अच्छे रहते है क्योंकि ये पसीने को सोखने में अधिक सक्षम शरीर के न चिपकने वाले तथा ताप के कुचालक होते है। हल्के रंग के वस्त्र ऊष्मीय विकीरणो के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देते है जिससे गर्मी कम लगती है।
2. शीत ऋतु/सर्व जलवायु: सर्दी के मौसम में गहरे, ऊनी तथा फर वाले वस्त्र उपयुक्त रहते है क्योंकि ये गर्म होने के साथ-साथ ताप के अच्छे अवशोषक होते है।
3. वर्षा ऋतु वर्षा ऋतु में टेरीकॉट / रेनकॉट/सिंथेटिक वस्त्र अधिक उपयुक्त रहते है जो शीघ्र सूख जाते है।
मौसमानुसार वस्त्रो को खरीदते समय उनके किस गुण का ध्यान रखना चाहिए वस्त्रो की ताप संवाहकता का।
वस्त्रों के प्रकार
सूती वस्त्र :- सूती कपड़ा कपास से बने धागों से बुना जाता है। कपास से कपड़ा बनने की प्रक्रिया कपास, कपास से धागा, मशीन से कपड़े की बुनाई, कपड़े की रंगाई, कपड़े की सिलाई चरण से गुजरती है।
ऊनी वस्व: ऊनी वस्वों के लिए ऊन भेड़ों, बकरी, कैट, खरगोश, याक आदि से प्राप्त की जाती है। पश्चिमी राजस्थान में भेड़ पालन एक प्रमुख व्यवसाय है। ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र के लोग साल भर ऊनी वस्त्र पहते है क्योंकि वहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है।
• रेशमी वस्त्र: रेशमी वस्त्र रेशमी धागों से तैयार किया जाता है। यह धागा रेशम कीट अपनी लार से तैयार करता है। यह कीट शहतूत की पत्तियों को खाता है।
खादी वस्त्र: हाथ से कताई एवं बुनाई से बने कपड़े खादी कहलाते है। गाँधीजी ने खादी वस्त्रों को प्रोत्साहित किया। गाँधी जयंती (2) अक्टूबर) पर खादी के बने वस्त्रों की कीमत पर विशेष छूट दी जाती है।
• विभिन्न राज्यों की पोशाकें :-
जम्मू कश्मीर तरंगा, फिरन, पठानी सूट, बुरगा, कसाबा, गाँचा, कुन्टोप्स
हिमाचल प्रदेश- किरा, राहिदे, तेपांग, होजुक
महाराष्ट्र- नवरी साड़ी, फतुई, पैठणी साड़ी
पंजाब- फुलकारी, पटियाला सलवार, परांडी, कुर्ता-पायजामा, तहमत, शरारा
कैरल- मुंडम नेरीयाथुम
घर पर वस्त्रों का रखरखाव व सफाई
वस्त्रो की देखभाल एवं रखरखाव के समय ध्यान रखने योग्य बिन्दू-
1. वस्त्रो से सुई-पिन इत्यादि निकालकर रखें, क्योंकि इनसे वस्त्र का रेशा खींचने की आशंका रहती है।
2. नमीयुक्त स्थान पर वस्त्रों का संग्रहण न करे इससे फफूंद लगने का खतरा रहता है।
3. धूल, गंदगी व धूप से वस्त्रों को बचाकर रखें।
4. वस्त्रो को संग्रहण से पूर्व भली प्रकार धोकर सुखा ले।
5. स्वच्छ वस्त्रो को गंदे वस्त्रो के साथ न मिलाएं।
6. वस्त्रो पर प्रेस करके उचित प्रकार तह लगाकर हैंगर में टींगकर रखें।
7. ऊनी वस्त्रो के संग्रहण में अखबार का प्रयोग करे। इससे कीड़े नहीं लगते।
8. वस्त्रों के रेशे के अनुसार फिनाइल अथवा नैफ्थलीन की गोलियों रखे।
9. वस्त्रो को समय-समय पर धूप तथा हवा लगाएँ। इससे वस्त्रो में दुर्गन्ध तथा कीड़े नहीं रहते।
10. बहुमूल्य वस्त्रो की सुखी धुलाई करवाकर रखे।
11. ऊनी वस्त्रो को वर्षा ऋतु के उपरांत एक-दो बार अवश्य ही 3-4 घण्टे के लिए तेज धूप में सुखाएँ।
वस्त्र संग्रहण के चरण
1. प्रथम चरण स्थान का चयन
2. दूसरा चरण वस्त्रों की छंटाई
3. तीसरा चरण यथास्थान रखना
4. चौथा चरण उपयोग में सावधानी
हस्तकरघा तथा पावरलूम
हस्तकरघाः-
करघा कपड़ा बनाने के लिए धागे बुनने की मशीन है। हस्तकरघा को हाथ से चलाया जाता है। हथकरघा उद्योग कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाला प्रदूषण रहित विकेन्द्रित कुटीर उद्योग है। प्रतिवर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथरघा दिवस मनाया जाता है।
पावरलूम :-
प्राचीन काल में सूत कातने के लिए चरखे एवं हस्तकरचा का उपयोग किया जाता था लेकिन इंग्लैण्ड में हुई प्रथम औद्योगिक क्रांति के उपरांत विद्युत चालित करघे उपयोग में लाए जाने लगे जिन्हे पावरलूम कहा जाता है।
पावरलूम का आविष्कार कार्टाराइट ने 1785 ई. में किया जिसके पश्चात् वस्त्र उद्योग में आमूलचुक परिवर्तन हुआ क्योंकि अब सूत कातना आसान हो गया था। लेकिन इससे कई बुनकर बेरोजगार हो गये।
वस्त्र उद्योग में पावरलूम उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि कुल वस्त्र उद्योग में इसकी हिस्सेदारी 62 प्रतिशत है।
आवास
किसी सजीव का वह परिवेश जिसमें वह रहता है, उसका आवास कहलाता है। अपने भोजन, वायु, शरण स्थल एवं अन्य आवश्यकताओं के लिए सजीव अपने आवास पर निर्भर रहता है। आवास का अर्थ है बास स्थान (एक घर)
जीव जंतुओं के आवास
1. स्थलीय आवास :-
स्थल (जमीन) पर रहने वाले जीवो का आवास।
(i) वनीय आवास :- वनीय आवास में जन्तु एवं पेड़ पौधे दोनों पाये जाते है, जो एक-दुसरे पर आश्रित रहते है। जैसे सभी प्रकार के जंगली जीव एवं वनस्पति।
(३) गरुस्थलीय आवास इन आवासों में अल्प वर्षा एवं उच्च तापमान की अतिशयता रहती है। जैसे ऊंट, जूही चूहा, छिपकली, कंगारु, केटल सांप आदि। वनस्पति में कांटेदार व छोटी-मांसल पत्ती वाले पेड़ पौधे मिलते है।
(ii) घास भूमि आवास घास भूमियो में लम्बी व मोटी घास अत्यधिक मात्रा में उगती है। जैसे गैंडा, जेबरा, हाथी, हिरण आदि। प्रमुख घास भूमियां सवाना, प्रेयरी, डाउन्स, पम्पाज, लानोज आदि।
(iv) पहाड़ी आवास पहाड़ो पर रहने वाले जीव जंतुओ का आवास। जैसे याक, भालू, पहाड़ी बकरियों।
(v) ध्रुवीय आवास ऐसे आवास जहाँ साल भर बर्फ जमी रहती है। अतः यहाँ पाए जाने वाले जन्तुओ के शरीर पर फर पाये जाते है तथा चर्म के अंदर वसा की परत होती है, जो न केवल सर्दी से बचाते है बल्कि अत्यधिक ठण्ड के दिनों में भोजन के संरक्षण का कार्य भी करती है।
जैसे - ध्रुवीय भालू, रेडियर, आर्कटिक लोमड़ी, उलशीप (भेड़), वालरस आदि जानवर।
2. जलीय आवास
जल में रहने वाले जीवो का आवास।
(1) ताजा जलीय आवास नदियाँ, झीले, तालाब, झरने आदि में रहने वाले जीव।
जैसे- मछलियाँ, केकड़े, मगरमच्छ, टैडपॉल आदि जीव।
(३) समुद्री आवास :- समुद्री पानी (महासागर व सागर) में रहने वाले जीवो का आवास। जैसे - कुत्ता मछली, समुद्री घोड़ा, व्हेल, शार्क, समुद्री ड्रेगन, समुद्री कछुआ, समुद्री सौंप आदि जीव।
(ii) तटवर्ती आवास :- इन क्षेत्रों में समुद्री जल एवं नदियों द्वारा लाए गए जल का मिश्रण होता है। जैसे- मैंग्रोव / दलदली/सुंदरी वनस्पति की प्रधानता।
विभिन्न प्रकार के मानव आवास
पहाड़ी क्षेत्रों में मकानः- भारत में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि पहाड़ी क्षेत्रों वाले राज्य है। यहाँ बर्फ गिरती है। यहाँ के मकानो की छतें भी ढलान वाली होती है।
समुद्रतटीय क्षेत्रों में मकान :- इन क्षेत्रों में समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरे उठती है। समुद्री तूफान भी आते है। समुद्र तटीय मकानों को बनाने में जंगल की प्रधानता के कारण लकड़ी का प्रयोग अधिक होता है इसके अतिरिक्त लकड़ी समुद्री तूफान से बचाव करती है। समुद्री तूफान तथा तेज बारिश के कारण मकानों की दीवारे पक्की होती है।
मरुस्थली क्षेत्रों के मकान :- रेगिस्तान इलाकों के मकानों की छते ढालू होती है, इससे धूल भरी आंधियों के कण मकानों पर नहीं ठहरते। इन क्षेत्र के मकानों की छते कवेलू (खपरैल) और बांस की बनी होती है।
टुंड्रा क्षेत्रों के मकान :- इन क्षेत्रों में बर्फ के मकान बने होते है जिन्हें इग्लू कहा जाता है। एस्किमों जनजाति के बर्फ निर्मित गुम्बदाकार मकान होते है।
तरह-तरह के घर
सामूहिक घर (रैन बसेरा): ये सरकार द्वारा निर्मित बेघर लोगों के अस्थायी आवास है। रैन बसेरे सार्वजनिक स्थानों के पास बनाए जाते हैं।
बहुमंजिला मकान :- गाँवों से शहर की ओर पलायन से शहरों में जमीन कम व लोग अधिक हो जाते है। इसी कारण बड़े शहरों में बहुमंजिला मकान बनाने पड़ते है।
गाड़ी में घर :- चित्तौड़ पर मुगलों के आक्रमण के समय से गाडीलिया लुहारों के पूर्वजों ने मेवाड़ के शासक के साथ अपना घर त्याग दिया था। तब से गाड़ी के घर में रहते है।
टेंट या तंबू :- ये प्राकृतिक आपदा में बेघर लोगों का अस्थाई आवास है। इसके अतिरिक्त देश के सैनिक दुर्गम स्थानों पर कई दिनो तक तंबुओं में रहते है। ये तंबू कपड़े या प्लास्टिक से बने होते हैं।
कुछ जीव जंतुओं के विशिष्ट आवास
● मांद या गुफा हिंसक जंतु (शेर, बाघ, लोमड़ी, भालू) आदि।•
● घोंसला बया, बुलबुल, कठपोड़वा, चिड़िया।
● पेड़ की शाखाएँ चील, बंदर, कौआ, टिड्डा।
● पिंजरा/जाली पक्षियों के घर।
● जाल मकड़ी।
● केनल - कुता।
● पीलखाना हाथी।
● शतुरशाला ऊँटो का बाड़ा।
● छत्ता मधुमक्खी, बर्र, ततैया।
● बिल साँप, चूहा, खरगोश, चींटी, छहुंदर।
● पेड़ की कोटर गिलहरी, तोता, कंगारु।
● बाड़ा/छप्पर गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि पालतु जीव।
● दड़बा - मुर्गी।
● अस्तबल घोड़ा।
● शूकरशाला - सूअर ।
● वल्मीक चींटी।
आवास एवं निकटवर्ती स्थानों की स्वच्छता
स्वच्छता के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है
● मकान की नालियां साफ सुथरी एवं ढकी हुई हो।
● सभी आवासो के लिए समुचित हवा, पानी, रोशनी, जल निकासी व शौचालय आदि की व्यवस्था हो।
● घर का कुड़ा-करकट बाहर नहीं फैकना चाहिए। ग्राम पंचायत व नगर पालिका के सफाई कर्मचारी को सुपुर्द करना चाहिए।
● रसोईघर में धुएँ के निकासी हेतु चिमनी की व्यवस्था होनी चाहिए।
● खाने को ढक कर रखना चाहिए ताकि घरेलू मक्खियों से संदूषण से बचाया जा सके।
● जल स्रोत साफ सुथरे होने चाहिए।
● घरो में फिनाइल व DDT (डाईक्लोरो डाईफिनाइल ट्राईक्लोरो एथीन) का प्रयोग मक्खी मच्छर भगाने हेतु करना चाहिए।
● पानी के भरे हुए गड्डो में केरोसिन के तेल डालना चाहिए या उनमें गेम्बुसिया मछली छोड़ देनी चाहिए ताकि मच्छरो के पनपने से बचाया जा सके।
● स्वच्छता व संक्रामक बीमारियों हेतु जनजागरुकता फैलानी चाहिए।
स्वच्छता के लिए सरकारी प्रयास
● स्वच्छ भारत मिशनः- यह अभियान भारत सरकार द्वारा महात्मा गाँधी की जयंती 02 अक्टूबर, 2014 को आरम्भ किया गया। इसका उद्देश्य गलियों, सड़कों, सार्वजनिक स्थलों की सफाई व खुले से शौच मुक्त बनाना है।
● नमामि गंगेः- भारत सरकार ने जून, 2014 में नमामि गंगे नामक समेकित गंगा संरक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किया है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय नदी गंगा को स्वच्छ व निर्मल बनाना है।
आवास निर्माण हेतु विभिन्न प्रकार की सामग्रियाँ
आवास निर्माण के लिए सामान्यतः पत्थर, ईट, चूना, सीमेंट, रेत, बजरी, लोहा, संगमरमर, सैण्ड स्टोन आदि प्रयुक्त होते है। जंगलों व पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़ पौधे अधिक होने से मकान बनाने में लकड़ी का प्रयोग अधिक होता है। आजकल लोहे के सरियो के ढाँचे मे सीमेंट व कंकरीट डालकर छतें बनाई जाती है जिसे आर.सी.सी. (रेनफोर्सड सीमेंट कंक्रीट) छत कहते है।