दहेज प्रथा
• दहेज का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। बहम विवाह में पिता वस्त्र एवं आभूषणों से सुसज्जित कन्या का विवाह योग्य वर के साथ करता था। रामायण एवं महाभारत काल में भी दहेज का प्रचलन था।
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• मैक्स रेडिन के अनुसार साधारणतः दहेज वह सम्पत्ति है जो एक पुरुष विवाह के समय अपनी पत्नी या उसके परिवार से प्राप्त करता है।'
दहेज के कारण
● जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र
● शिक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा
● सामाजिक प्रथा
● पुरुष प्रधान समाज
● विवाह की अनिवार्यता
●धन का महत्व, महंगी शिक्षा
●प्रदर्शन व झूठी प्रतिष्ठा
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम
● बालिका वध, लिंगानुपात में कमी, लड़कियों का शोषण
● हत्या व आत्महत्या, अपराध को प्रोत्साहन
● बहुपत्नी विवाह, बेमेल विवाह
● स्त्रियों की निम्न स्थिति
इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार है-टी।
● पारिवारिक विघटन
● ऋणभ्रस्तरा
● विवाह की समाप्ति
दहेज निरोधक अधिनियम, 1961-
1. इस अधिनियम में दहेज को इस प्रकार परिभाषित किया है- "विवाह के पहले या बाद में विवाह की एक शर्त के रूप में एक पक्ष या व्यक्ति दूसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई कोई भी सम्पत्ति या मूल्यवान वस्तु दहेज कहलागी।"
2. विवाह के अवसर पर दी जाने वाली भेंट या उपहार को दहेज नहीं माना जाएगा।
3. दहेज लेने व देने वाले तथा इस कार्य में मदद करने वाले व्यक्ति को छः माह की जेल और पाँच हजार तक दण्ड किया जा सकता है।
4. धारा 7 के अनुसार दहेज संबंधी अपराध की सुनवाई प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ही कर सकता है और ऐसी शिकायत लिखित रूप से एक वर्ष के अन्दर ही की जानी चाहिए।
1984 एवं 1986 में दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 में संशोधन कर इसे और कठोर बनाया गया।
राज्य सरकार ने राजस्थान दहेज प्रतिषेध नियम 2004, 17 जुलाई 2004 प्रारंभ हुआ।